Homosexuality and Unnatural Sex Relations-19 : अप्राकृतिक संबंधों से बचाने के लिए जेल में पत्नी से सेक्स का प्रबंध

  अप्राकृतिक यौन संबंध व समलैंगिकता को बढ़ाने में जेलें व विभिन्न तरह के कारावास भी बहुत बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। अपनी यौनेच्छा पूरी करने के लिए कैदी अपने साथी कैदियों से अप्राकृतिक यौन संबंध बनाते हैं व अंजाने में ही जानलेवा बीमारियों को आमंत्रण दे बैठते हैं। 

वर्र्ष 2008 में तिहाड़ जेल के कैदियों में एचआईवी पीड़ितों का पता लगाने के लिए एक टेस्ट करवाया गया था। इस जेल में उस समय 11ए500 कैदी थे। इनमें से लंबी सजायाफ्ता 1709 लोगों के सेंपल लिए गए थे, जिनमें से 140 एचआईवी पॉजीटिव पाए गए थे। ये वे लोग थे, जो जेल में नए कैदियों से अप्राकृतिक यौन संबंध बनाते थे।

पिछले दिनों महाराष्ट्र सरकार ने भी अपनी जेलों में एचआईवी पॉजीटिव कैदियों का पता चलाने के लिए टेस्ट करवाए थे। लगभग हर जेल में काफी संख्या में एचआईवी पॉजीटिव कैदी पाए गए थे। इसका कारण अप्राकृतिक यौन संबंध पाया गया था। किस जेल में कितने कैदी एचआईवी पॉजिटिव पाए गए, इसका उल्लेख नीचे दिया जा रहा है ः

यरवदा सेट्रल जेल, पूना ः  55

थाणा सेंट्रल जेल ः  37

नासिक सेंट्रल जेल ः  32

अमरावती सेंट्रल जेल ः  14

नागपुर सेट्रल जेल ः  14

कोल्हापुर जेल ः  14

औरंगाबाद जेल ः  06

भंडारा जेल ः  04

कल्याण जेल ः  04

वर्धा जेलः   03

रायगड जेल  ः  02

ओस्मानाबाद जेल  ः     01 

कुल         182 

आज पूरे विश्व में शायद ही कोई ऐसी जेल होगी, जहां के सारे कैदी पूरी तरह से ब्रह्मचर्य का पालन करते हों। जेलों में जो कैदी लंबी अवधि तक की सजा भुगतते हैं, वे प्रायः नए कैदियों से अप्राकृतिक यौन संबंध बनाते हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि जेलों में इस तरह के संबंध बनाने के लिए सुरक्षित सेक्स का कोई तरीका जैसे कंडोम आदि उपलब्ध नहीं होते। सेक्स संबंध अप्राकृतिक तो होते ही हैं, साथ ही असुरक्षित भी होते हैं, जिससे अनेक कैदी जानलेवा बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं।

मानवता के नाते जेलों में आज कैदियों को आधुनिक सुविधाएं और स्वास्थ्यवर्धक भोजन तो मिलने लगा है, लेकिन वे सेक्स से पूरी तरह वंचित रहते हैं। जबकि यह भी इंसान की एक शारीरिक आवश्यकता है।

महाराष्ट्र सरकार की पहल

पिछले दिनों जेलों में एचआईवी पॉजिटिव कैदियों की बढ़ती संख्या के मद्देनजर बंबई हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से इस बात की संभावना की पड़ताल करने को कहा था कि क्या कैदियों को जेल में एकांत में अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध बनाने की इजाजत दी जा सकती है? कोर्ट को लगा कि जिन लोगों को कैद होती है या जो विचाराधीन हैं, वे एक नैसर्गिक प्रक्रिया(दाम्पत्य सुख) से वंचित रह जाते हैं। इससे उनमें तमाम तरह की विसंगतियां उत्पन्न हो जाती हैं जिनमें एड्स भी एक है। एचआई पॉजिटिव कैदियों को इलाज सुविधा मुहैया कराने के संबंध में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूति पीबी मजूमदार और न्यायमूति आरजी केतकर ने सरकार से दो से तीन साल से जेल में बंद कैदियों को यह सुविधा मुहैया कराने की संभावना तलाशने को कहा था, जिसके तहत उन्हें हर महीने कुछ समय के लिए बिल्कुल एकांत में अपनी पत्नी से मिलने की इजाजत दी जाए। न्यायाधीशों ने सरकार से मुद्दे की पड़ताल करने को कहा था क्योंकि उनका मानना था कि एचआईवी संक्रमित मामले असुरक्षित या अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने की वजह से भी हो रहे हैं। दाम्पत्य सुख जैसे सहज प्रक्रिया से वंचित होने पर क्या इन कैदियों में ऐसी विसंगतियों का पनपना स्वाभाविक नहीं है? हम इसे पसंद करें या न करें लेकिन जेलों में यौन संबंध बनाए जाने से कैदियों को ऐसी बीमारी से बचने की संभावना ज्यादा है। सवाल यह है कि यह ऐसा मुद्दा है जिसे हममें से हर कोई ढंकना चाहता है। जबकि कुछ एशियाई और यूरोपीय देशों में कैदियों को दांपत्य अधिकार की अनुमति देना स्वीकार्य मानदंड है। 

इस मसले पर प्रकाश डालते हुए हमें कोर्ट से आगे की व्याख्या करने की जरूरत है। क्योंकि कोर्ट ने तो सिर्फ बीमारी का ही पक्ष उठाया। एक पहलू यह भी है कि अगर जेलें व्यक्ति के सुधार का लक्ष्य लेकर चलती हैं तो यह बात मान लेनी चाहिए कि कारर् िचाहे जो भी हो, जब व्यक्ति को आप नैसर्गिक प्रक्रिया से वंचित करेंगे तो उसकी मानसिक बुनावट भी प्रभावित होगी। इसे समझने के लिए एक उदाहरर् िसेना के जवानों का लिया जा सकता है। उनके साथ भी कुछ ऐसी ही परेशानी होती है। लंबे दिनों तक वे अपने साथी से दूर रहते हैं। घने जंगलों से लेकर वियावान सीमाएं और सियाचीन तक। जिंदगी संगिनों के साए में कटती है। दाम्पत्य सुख की बात तो दूर कभी-कभी अपनों से संवाद स्थापित करने में भी महीनों लग जाते हैं। इसी अवसाद और मानसिक असंतुलन का नतीजा खुद की खोपडी में या साथी जवान को गोली मार देने की खबरें हमारे सामने आती हैं। अमूमन इसे एक तात्कालीक घटना मानकर भुला दिया जाता है। लेकिन ऐसा है नहीं। लंबे दिनों से चले आ रहे अवसाद का परिर्ािम होता है खुद की जान और अन्य की जान के साथ खतरा। इसे मानकर चलना चाहिए कि कैदी की भी शारीरिक जरूरतें हो सकती हैं। अगर एक कैदी को अपनी पत्नी के साथ एक या दो दिन बिताने के लिए अलग स्थान दिया जाए तो अवश्य उनके मानसिक स्तर पर एक चमत्कारी प्रभाव पडेगा। यानी अपराधी को जेल और घर के बीच फर्क नजर नहीं आएगा। समाज का कानून तोड़ने के बाद किसी को जेल भेजा जाता है ताकि वो सजा पाकर सुधरने की कोशिश करे।

ये बात और है कि भारतीय जेलों में सुधरने वाले कैदियों की संख्या ना के बराबर है। लेकिन सरकार कैदियों को अगर दाम्पत्य सुख मुहैया कराने की सुविधा देती है तो इस कदम के बाद उनकी सजा शायद सजा ना रह जाए। सवाल उठता है कि क्या अपराधी इंसान नहीं हैं? बेशक वो इंसान हैं। भारतीय जेलों को सुधार गृह भी कहा जाता है। क्योंकि सरकार मानती है कि कोई भी अपराधी या कैदी गलती से या अनजाने में भी अपराध कर गुजरते हैं। ऐसा करते वक्त उन्हंें गलत सही का भान नहीं रहता क्योंकि ऐसा वे भावावेग में भी आकर कर बैठते हैं। सरकार ऐसा मानती है कि सुधार गृहों में रखकर उन्हें सुधारा जा सकता है,ै ताकि जब वे बाहर निकलें तो एक कुशल नागरिक की भूमिका अदा करें। लेकिन क्या उन्हें दाम्पत्य सुख से वंचित रख, एक मानसिक समस्या में डालकर उनका सुधार किया जा सकता है? क्या उनमें अपराध भावना के अलावा हिंसा, चिडचिडापन या अवसाद की भावना प्रबल नहीं होती जाएगी? किसी स्त्री या पुरुष ने अपराध किया और वह जेल गया लेकिन उसका साथी क्यों किसी सार्वभौमिक और नैसर्गिक अधिकार से वंचित हो जाता है? सजा तो उसे ही मिलनी चाहिए जिसने अपराध किया हो। लेकिन दाम्पत्य सुख से वंचित कर दूसरे को समस्या के जोखिम में ज्यादा डाल दिया जाता है। सोचने वाली बात है कि उस स्त्री या पुरुष का क्या अपराध, जिसका साथी जेल में बंद है। जाहिर सी बात है कि इससे भी सामाजिक विकृतियां पनपती हैं। ऐसी ही सामाजिक विकृतियों में एक आप्राकृतिक यौन संबंध भी है। प्रकृति कभी इसकी अनुमति नहीं देती कि कोई प्रार्ीि उसके नियम-कानूनों के विरुद्ध रवैया अपनाए। प्रकृति यह सिखाती है कि पानी को एक जगह रोकेंगे तो वह निकलने का दूसरा रास्ता बना लेता है। उसे एक जगह रोक दें तो सडांध पैदा होती है जिससे आसपास के सभी लोगों को परेशानी होती है।

यह बात जेल में बंद कैदियों पर भी लागू होती है। उन्हें बलात यौन सुख से वंचित रखने के कारर् िही वे अप्राकृतिक आचरर्ोिं को बाध्य होते हैं। इसलिए इस बीमारी की जड़ का इलाज जरूरी है न कि एड्स के कारर् िढूंढने का। दाम्पत्य सुख से वंचित करना कैदियों के मौलिक अधिकारों का हनन है। दुर्भाग्य की बात है कि दुनिया में तमाम मानवाधिकार हनन की बात तो पुरजोर ढंग से उठाई जाती है लेकिन इस पर किसी का ध्यान नहीं जाता। जबकि एड्स जैसी घातक बीमारी को फैलाने में इस तत्व का एक अहम रोल सिद्ध हो चुका है। हालांकि इसके विपक्ष में भी बातें हो सकती हैं। लोग कह सकते हैं कि जेल अपराध भोगने का स्थल है न कि विलास का। लेकिन यह तर्क दम नहीं भरती क्योंकि शरीर विज्ञान स्थापित करता है कि रोटी की तरह शारीरिक संबंध भी एक मूल आवश्यकता है। दूसरा एक तर्क यह भी है कि गलती किसी ने की हो लेकिन उसका दंड वे क्यों भुगतें जो अपराधी के दाम्पत्य साथी हैं? 

इतिहास खंगालें तो पता चलता है कि पुराने समय में जब राजाओं की सेना दूर-सुदूर अभियानों पर जाती थी तो वे अपने साथ वेश्याएं भी ले जाते थे। उनका भी तंबू वहीं लगता था। यह बात इशारा करती है कि कैदियों को दाम्पत्य सुख से वंचित रख उन्हें सामान्य मनःस्थिति में नहीं रख सकते। यह संबंध विलासिता नहीं है और जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं में से एक हैै। 

     एक कैदी ने कोर्ट से की गुहार

एक कैदी को भी सेक्स की कितनी आवश्यकता होती है, इसका पता इस बात से भी चलता है कि दिल्ली की जेल में हत्या के आरोप में बंद एक कैदी ने कोर्ट से गुहार लगाई कि उसे पत्नी के साथ सेक्स की अनुमति दी जाए। आरोपी कैदी संदीप त्यागी ने इसके पीछे तर्क दिया कि जेल में बंद कैदियों के भी अपने कुछ मौलिक अधिकार होते हैं और उसे वह अधिकार मिलने चाहिएं।

दिल्ली हाईकोर्ट से अंतरिम जमानत देने की मांग करते हुए संदीप ने कहा कि कैदियों को भी यौन संबंध बनाने का अधिकार है और उन्हें अपने साथी के साथ बच्चे पैदा करने का मौलिक अधिकार है।

 संदीप 2008 से हत्या के एक मामले में जेल में बंद किया गया था।उसके वकील ने कोर्ट में कहा था कि जेल में सजा काट रहे आरोपी के अपने मौलिक अधिकार हैं, हालांकि जेल में रहते हुए उन अधिकारों पर ग्रहर् िलग जाता है। संदीप के वकील ने कहा कि सैक्स जैसे अन्य लोगों के लिए जरूरी है, वैसे ही जेल में बंद अपराधियों के लिए भी महत्वपूरर््ि है। अगर जेल में बंद कैदी को इसकी स्वतंत्रता नहीं मिली तो वह जेल के अंदर अप्राकृतिक यौन संबंध जैसे अपराध भी कर सकता है। इसलिए कैदियों को इसकी थोड़ी-सी स्वतंत्रता मिलनी चाहिए ताकि वे जेल में ऐसी घटनाओं को अंजाम न दे सकें। 

संदीप त्यागी द्वारा कोर्ट में दायर इस अपील को मीडिया ने भी खुलकर 16 मई, 2013 को प्रकाशित और प्रचारित किया । कुछ अखबारों ने इस पर लेख भी लिखे तथा कैदियों को सेक्स सुविधाएं देने को मानवता भरा एक कदम बताया।

पंजाब सरकार भी कर रही है विचार

पंजाब सरकार भी कैदियों के लिए सेक्स की सुविधा देने के प्रति गंभीर हो गई है। पंजाब की जेलों में बंद कैदियों के लिए अब विशेष जोन बनाकर उनको सहवास की सुविधा देने पर विचार किया जा रहा है। अगर भारत की अन्य प्रदेश सरकारें भी इस पर गौर करें तो एक ओर जहां कैदियों की मानसिक स्थिति में 

सुधार आएगा, वहीं अप्राकृतिक यौन संबंधों या समलैंगिकता में भी भारी कमी दर्ज की जा सकेगी।

इस सन्दर्भ में एक प्रस्ताव डी.जी.पी जेल द्वारा पंजाब सरकार को भेजा गया था, जिसमें लिखा गया था कि बंद कैदियों को जेल में बने विशेष ‘सैक्स जोंस में अपने साथी के साथ रहने एवं सहवास करने की आज्ञा दी जा सकती है। अगर पंजाब सरकार इस प्रस्ताव को स्वीकार करती है तथा ऐसा हो जाता है तो पंजाब जेलों में बंद कैदियों को यह सुविधा देने वाला देश का पहला राज्य बन जाएगा।  बताया जा रहा है कि यह प्रोग्राम जेल सुधार प्रोग्राम के तहत बनाया गया है, जिसके तहत यह माना गया है कि सैक्स मानव की उसी तरह पहली जरूरत है जैसे भोजन। अगर उसकी यह जरूरत पूरी नहीं होती तो मर्द कैदियों में असुरक्षित सैक्स संबंध पैदा होते हैं।  इस प्रस्ताव के अनुसार जेल में सिर्फ कानूनी तौर पर पति-पत्नी को इस सैक्स जोन में रहने की आज्ञा होगी तथा जो कैदी इस बारे में अर्र्जी देगा उसकी पूरी जांच करने के उपरांत जेल में उसके कैरेक्टर, कैदियों तथा जेल कर्मचारियों से उसके व्यवहार तथा उसकी सजा के समय को ध्यान में रखकर ही उसकी अर्र्जी पर इस संबंध में फैसला किया जाएगा।

यहां हमें यह भी जान लेना जरूरी है कि जेल में कैदियों को अपनी पत्नी के साथ सैक्स संबंधों की सुविधा संसार में कई देशों में पहले से ही दी जा रही है परंन्तु भारत में आज तक किसी जेल में ऐसा नहीं हुआ तथा ऐसा प्रस्ताव भी पहली बार पंजाब में ही सामने आया है तथा अगर यह प्रस्ताव पास होता है तो पंजाब पूरे भारत में यह सुविधा देने वाला पहला राज्य बन जाएगा।

पाकिस्तान के सिंध में है सुविधा

पाकिस्तान में सिंध प्रांत की जेलों में इस तरह की सुविधा शुरू हो चुकी है। यहां पांच साल से अधिक समय बिताने वाले बंदियों को उनकी पत्नी के साथ एक रात रहने की अनुमति दी जा रही है।

प्रांतीय सरकार ने सिंध उच्च न्यायालय एवं उच्चतम न्यायालय जेल 

सुधार समिति की बैठक के बाद बंदियों को प्रत्येक तीन माह के बाद पत्नी के साथ एक रात रहने की अनुमति देने का निरर््िय लिया है।

गृह मंत्री द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार बंदियों की पत्नियों को उनके पतियों के साथ जेल में एक रात रहने की अनुमति दी जाएगी। इसके लिए उन्हें वैध निकाह दस्तावेज और राष्ट्रीय पहचान पत्र साथ में लाना होगा। यह सुविधा केवल उन्हीं बंदियों को मिलेगी जो जेल में पांच साल से अधिक का समय बिता चुके हैं। नए निर्देशों के अनुरूप बंदियों को उपयुक्त सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी। यह अधिसूचना बंदियों विशेषकर बाशो शबरानी नामक व्यक्ति के लिए खुशखबरी लेकर आई जो लरकाना जेल में 117 साल की सजा काटने आया और 21 साल की सजा बिता चुका है।

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि अगर जेल में पत्नी से सेक्स करने की इजाजत दी जाए तो अप्राकृतिक यौन संबंधों और समलैंगिकता पर काफी हद तक अंकुश लगाया जा सकता है तथा कैदियों को जानलेवा बीमारियों से बचाया जा सकता है। भारत में जिस तरह की पहल पंजाब सरकार कर रही है, अगर अन्य प्रदेश सरकारें भी ऐसा ही विचार करें तो अप्राकृतिकत यौन संबंधों पर काफी हद तक अंकुश लगाया जा सकता है।

J.K.Verma Writer

99996666769

jkverma777@gmail.com

टिप्पणियाँ

Homosexuality and Unnatural Sex Relations : J..K.Verma

Homosexuality and Unnatural Sex Relations-22 : अप्राकृतिक यौन संबंधों व समलैंगिकता से जुड़े सवाल-जवाब

Homosexuality and Unnatural Sex Relations-23 : समलैगिंक बनो और जो कुकर्म करने हैं, करो

Homosexuality and Unnatural Sex Relations-21 : अप्राकृतिक संबंधों के लिए नशीली दवाएं, इंजेक्शन व उत्तेजक दवाइयां