Homosexuality and Unnatural Sex Relations-7 : ओरल सेक्स के जोखिम

   अप्राकृतिक यौन संबंध अनेक तरह से इंसान के लिए बेहद खतरनाक हैं। ऐसे संबंध रखने वाले व्यक्ति का घरेलू, सामाजिक, राजनीतिक और व्यक्तिगत जीवन लगभग चौपट हो जाता है। लेकिन इससे भी बढ़कर यह जिसके लिए ज्यादा खतरनाक है, वह है स्वास्थ्य। इस तरह के संबंध तब और भी खतरनाक हो जाते हैं, जब ये असुरक्षित ढंग से किए जाते हैं। इंसान कई तरह की गुप्त व लाइलाज बीमारियों का शिकार हो जाता है। अप्राकृतिक यौन संबंध स्वास्थ्य के लिए किस प्रकार घातक हैं, इस अध्याय में यही जानने का प्रयास करते हैं।

यौनांगों को समझिए

सेक्स स्पेशलिस्ट बताते हैं कि समलैंगिक पुरुषों का मैथुन पुरुष-स्त्री के मैथुन से काफी भिन्न होता है क्योंकि प्रकृति ने सिर्फ विपरीतलिंग के अवयवों को यौनाचार के लिये पूरक के रूप में ढाला है, न कि समलिंगियों के यौनांगों को। गुदा की संरचना, पेशियों का खिचाव, उसमें उपलब्ध खाली स्थान आदि  योनि की संरचना से एकदम भिन्न है। अतः इस तरह के यौनाचार का असर योनि-लिंग यौनाचार से भिन्न होगा और इस असर के बारे में जानना बहुत जरूरी है। इतना ही नहीं, पुरुष-स्त्री की तुलना में समलिंगी लोग अन्य प्रकार के मैथुन (उदाहरर् िके लिये मुख मैथुन) का प्रयोग अधिक करते हैं, एवं इसका असर भी जानना जरूरी है।

पापलाइन एक ऐसा ग्रंथ है, जिसमें 1827 से लेकर आज तक हुए यौनसंबंधी 3ए60ए000 वैज्ञानिक अनुसंधान रपटों का संग्रह है। अनुसंधानों के आधार पर समलैंगिक मैथुन एवं स्वास्थ्य संबंधी अनेक बातें सामने आई हैं, जो इस प्रकार हैं ः -

0 गुदा मैथुन में रत लोगों में एड्स की संख्या सामान्य पुरुष-स्त्री मैथुन में रत लोगों की तुलना में दस गुना होती है।

0 पुरुष समलैगिंकों में प्रोसाईटिस नामक गुदारोग व्यापक है एवं इसकी चिकित्सा काफी कठिन है।

0 उस तरह के बेक्टीरियाओं की संख्या समलैंगिकों के बीच बढ रही है, और तेजी से बढ रही है, जिन पर एंटीबायोटिक्स का असर निष्क्रिय होने लगा है। यहां तक कि इसका नाम ही समलैंगिक महामारी (गे प्लेग) पड गया है।

0समलैंगिकों के बीच सिफलिस और गोनोरिया (लैंगिक बीमारियां) सामान्य लोगों की तुलना में कई गुना तेजी से बढ रही हैं।

0 अन्य कई प्रकार के बेक्टीरिया, अमीबियासिस, हेपेटाईटिस बी एवं कई प्रकार के वायरसों का प्रसार इन लोगों में आम जनता की तुलना में कई गुना ज्यादा होता है।

0 गले के वायरल, बेक्ट्रीयल और फंगल संक्रमर् िइन लोगों के बीच एक महामारी बन चुकी है।

0 सामान्य जनता की तुलना में अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने वाले लोगों में नशीली दवाओं का प्रयोग बीस गुना तक अधिक होता है।

0 अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने वालों का औसत स्वास्थ्य स्तर उनके तुल्य आम जनता की तुलना में काफी बुरा होता है।

0 समैलैंगिकों की औसत उम्र सामान्य जनता की तुलना में काफी कम होती है, मृत्यु दर सामान्य से कई गुना  एवं रोगार्ुिओं के कारर् िमरने वालों की संख्या सामान्य से बहुत अधिक होती है।

इन अनुसंधानों के आधार पर कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि समलैंगिक जीवन शैली का असर शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर कल्पना से अधिक भयानक होता है।  इस जीवनशैली के असर के बारे में लोगों के बीच व्यापक तौर पर जागृति पैदा करना हम सबकी जिम्मेदारी है.

ह्यूमन-पैपीलोमा वॉयरस

मेडीकल साइंस के अनेक एक्सपर्ट मानते हैं कि जो अंग जिस काम के लिये बना है उससे वही काम लिया जाएगा, तो बात ठीक है, वर्ना किसी तरह का अननैचुरल( अप्राकृतिक) यौनाचार अपने साथ तबाही ही लेकर आता है। ओरल-सैक्स (मुख मैथुन) से तरह तरह की अन्य बीमारियों के साथ साथ ह्यूमन-पैपीलोमा वॉयरस (ीनउंद चंचपससवउं अपतने) के ट्रांसफर होने का खतरा बहुत बड़ा होता है (यह वही वॉयरस है जिसे कि गर्भाशय के मुख के कैंसर के बहुत से केसों के लिये दोषी पाया गया है)। ओरल-सैक्स के द्वारा इस तरह के वॉयरस के ट्रांसफर का जो खतरा बना रहता है उससे गले के कैंसर के बहुत से केस सामने आये हैं, यह हमने कुछ अरसा पहले ही एक मैडीकल स्टडी के परिर्ािमों को देखते हुए जाना था।

मेडीकल साइंस में उन बिमारियों का विस्तृत विवरण मिलता है, जो अप्राकृतिक यौन संबंधों से पैदा होती हैं। इनमें से कुछ बिमारियां तो लाइजाज और जानलेवा होती हैं। प्रायः ये बीमारियां असुरक्षित सेक्स करने से होती हैं। जो लोग मुख मैथुन, गुदा मैथुन, ग्रुप सेक्स और पशु मैथुन जैसे कृत्यों में लगे रहते हैं, वे वास्तव में बारूद के ढ़ेर पर बैठे होते हैं, जो कभी भी फट सकता है।

ओरल सेक्स के अन्य जोखिम

पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए मौखिक सेक्स पूरी तरह से सुरक्षित नहीं है। कई लोग यौन विविधता के कारर् िमौखिक सेक्स करते हैं, कुछ देर की मस्ती के कारर् िवे घातक बीमारियों का शिकार हो सकते हैं। आइए जानें ओरल सेक्स के कुछ और जोखिम पता लगाते हैं ः 

0 एक महिला जिसकी योनि में यीस्ट इन्फेक्शन हो, उसके साथ ओरल सेक्स करने पर पुरुष को भी यह इन्फेक्शन हो सकता है। सेक्स स्पेशलिस्ट बताते हैं कि हालांकि ओरल सेक्स से कोई भयंकर बीमारी नहीं होती लेकिन ओरल सेक्स के दौरान सावधानियां और साफ-सफाई न बरती जाए तो समस्या आ सकती है।

0 टोंसिल और जीभ के नीचे के हिस्से में कैंसर की वजह एचपीवी संक्रमर् िको ही माना जा रहा है। ओरल सेक्स से एचपीवी का संक्रमर् िहोता है। इस स्थिति में ओरल सेक्स को ही टोंसिल कैंसर की बड़ी वजह माना जा रहा है।

0 ओरल सेक्स में सेक्स पार्टनरों की संख्या बढ़ने से भी ओरल कैंसर होने की संभावना भी बढ़ जाती है।

0 यदि पुरूष और महिला दोनों में से किसी को कोई संक्रमित बीमारी है तो वह भी दूसरे पार्टनर को फैलने की संभावना बढ़ जाती है।

0 यदि महिला को माहवारी है और ऐसे में ओरल सेक्स किया जाता है तो इंफेक्शन होने का खतरा बढ़ जाता है।

0 यदि दोनों पार्टनर में से कोई भी एक योनिमार्ग से निकलने वाले सफेद पदार्थ को मुंह में लेता है तो भी इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है।

  कहने का अर्थ है कि ओरल सेक्स से जोखिम तब कई गुना बढ़ जाता है, जब जोश में होश खो दिए जाएं। यौन विविधताओं के चलते ओरेल सेक्स को पूरी तरह से सुरक्षित बनाने की हर संभव कोशिश करनी चाहिए। तभी महिला और पुरुष भावनात्मक और मानसिक रूप से पूरी तरह से जुड़ पाएंगे।

सबसे खतरनाक ः एड्स 

अप्राकृतिक यौन संबंधों से जो सबसे भयानक और कभी ठीक न होने वाला रोग हो सकता है, वह है एड्स। एड्स के बारे में हमें सब कुछ विस्तार से जान लेने की आवश्यकता है ताकि इससे बच सकें।

एड्स एक खतरनाक बीमारी है। मूलतः अप्राकृतिक और असुरक्षित यौन संबंध बनाने से एड्स के जीवार्ुि शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। इस बीमारी का काफी समय बाद पता चलता है और तब तक यह बीमारी लाइलाज बन चुकी होती है।

एड्स का पूरा नाम है एक्वायर्ड इम्यूनो डिफिशिएंसी सिंड्रोम है। न्यूयॉर्क में 1981 में इसके बारे में पहली बार पता चला, जब कुछ अप्राकृतिक यौन संबंधों में लिप्त लोग अपना इलाज कराने डॉक्टर के पास गए। इलाज के बाद भी रोग ज्यों का त्यों रहा और रोगी बच नहीं पाए, तो डॉक्टरों ने परीक्षर् िकर देखा कि इनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता खत्म हो चुकी थी। फिर इसके ऊपर शोध हुए, तब तक यह बिमारी कई देशों में जबरदस्त रूप से फैल चुकी थी और इसे नाम दिया गया एक्वायर्ड इम्यूनो डिफिशिएंसी सिंड्रोम यानी एड्स।

विश्व में ढाई करोड़ लोग अब तक इस बीमारी से मर चुके हैं और करोड़ों अभी इसके प्रभाव में हैं। अफ्रीका पहले नंबर पर है, जहां एड्स रोगी सबसे ज्यादा हैं। भारत दूसरे स्थान पर है। भारत में अभी 1ण्25 लाख मरीज हंैं, प्रतिदिन इनकी संख्या बढ़ती जा रही है। भारत में पहला एड्स मरीज 1986 में मद्रास में पाया गया था और यह व्यक्ति अप्राकृतिक यौन संबंधों में लीन था। 

भारत में इंटीरियर में चले जाएं तो यहां डॉक्टरों तक को पता नहीं कि इसकी जांच कैसे की जाती है, इलाज कैसे करना है। मरीज को कहां भेजना है तथा इसकी रोकथाम के लिए क्या उपाय जरूरी हैं। यदि कहीं पता चलता है कि फलां व्यक्ति एड्स रोगी है तो उसे लोग समाज में हेय दृष्टि से देखते हंैं, उससे परहेज करते हैं, भेदभाव करते हैं। एड्स अपने आप में एक पृथक बीमारी न होकर कई विकृतियों और बीमारियों के लक्षर्ोिं का एक समूह है।

भारत में यह बीमारी असुरक्षित यौन संबंधों के कारर् िही 85 प्रतिशत फैल रही है। भारत में अनेक गाड़ियों के ड्राइवर इसे तेजी से फैलाने का काम कर रहे हैं। कई लोगों को इसकी जानकारी नहीं है कि यह किस तरह फैलती है और इससे बचने के लिए क्या उपाय करना चाहिए। अमेरिका में यह अप्राकृतिक यौन संबंधों और समलैंगिकता के कारर् ितेजी से फैली।

योनि मैथुन की बनिस्बत गुदा मैथुन इसे फैलाने में ज्यादा सहायक होता है। इसका कारर् ियह है कि गुदा की म्यूकोजा यानी झिल्ली अत्यंत नाजुक होती है और झिल्ली क्षतिग्रस्त होने पर वायरस खून में शीघ्र पहुंच जाते हैं।

यहाँ तक कि पढ़े-लिखे लोगों को भी पूरी जानकारी नहीं है कि यह कैसे जकड़ती है, वे हाई सोसायटी गल्र्स के संपर्क में आकर इसके शिकार हो जाते हैं। शिक्षित वर्ग को यह भी नहीं मालूम कि बायोलॉजिकल, आर्थिक व सामाजिक रूप से महिलाएं ही इस रोग की शिकार ज्यादा होती हैं और वे ही इसे फैलाती भी हैं। पुरुष की अपेक्षा स्त्री में 20 गुना ज्यादा संक्रमर् िहोने की आशंका होती है।

 यह रेट्रो वायरस ग्रुप का एक विचित्र वायरस है, यह आरएनए के दो स्टैंडों से युक्त होता है, जो रिवर्स टासक्रिपटेज की सहायता से डबल स्टैंड डीएनए में परिवर्तित हो जाता है और फिर कोशिकाओं के डीएनए में हमेशा के लिए सुप्तावस्था में पड़ा रहता है।

एचआईवी वायरस के शरीर में प्रवेश करने, शरीर में सुप्तावस्था में रहने की क्रिया, एचआईवी संक्रमर् िकहलाती है, इस अवस्था में इंफेक्शन तो होता है, किन्तु बीमारी के लक्षर् िनहीं होते। संक्रमर् िको बीमारी की अवस्था में पहुंचने में 15 से 20 वर्ष लगते हैं। यह कई सालों तक मानव शरीर में पड़ा रहता है और अपनी संख्या बढ़ाता रहता है, दूसरी ओर मानव शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति खत्म करता जाता है। जब रोग प्रतिरोधक शक्ति खत्म हो जाती है तो फिर यह जागता है और अपना आक्रमर् िशुरू करता है। साथ ही शुरू होता है वह समय, जब मरीज धीरे-धीरे मौत की ओर जाने लगता है। मरीज की मौत के साथ ही यह संबंधित के शरीर से समाप्त होता है।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि अप्राकृतिक यौन संबंध स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक हैं तथा कई बार इनसे इस तरह के रोग हो सकते हैं, जो कभी ठीक नहीं हो सकते।

Copywrite : J.K.Verma Writer

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