Homosexuality and Unnatural Sex Relations-17 : सेक्स और सेक्सुएलिटी में फर्क

   कुछ लोग सेक्स और सेक्सुएलिटी को एक ही बात मान लेते हैं। उनका मानना है कि यौन क्रियाओं और योनिकता में कोई फर्क नहीं है। लेकिन ये दोनों ही बिल्कुल अलग-अलग क्रियाएं हैं। इस अध्याय में हम यौन क्रियाओं और यौनिकता यानि सेक्स और सेक्सुअल्टी के फर्क के बारे में जानंगे क्योंकि अप्राकृतिक यौन संबंधों व समलैंगिकता का इनसे गहरा संबंध है। 

  सेक्स क्या है

सेक्स एक जैविक क्रिया है। यह जननांगों के दृष्ट और शरीर रचना व प्रजनक कार्यों से संबंधित अदृष्ट भेदों से संबंध रखता है। वही सेक्स का एक अर्थ लिंग या स्त्री- पुरुष भेद से भी है।

हालांकि इसका अर्थ प्रत्येक व्यक्ति के लिए भिन्न हो सकता हैं। कुछ लोग इसे प्रक्रिया मानते हैं तो कुछ इसे समरसता के रूप में देखते हैं। कुछ अन्य इसे यौनिकता के रूप में ही सीमित करते हैं लेकिन यौनिकता केवल संभोग तक ही सीमित नहीं है बल्कि व्यापक अर्थो में इसमें शारीरिक, भावनात्मक के साथ ही मनोवैज्ञानिक पहलू भी शामिल हैं। इसी तरह सेक्स में यौनिकता के सकारात्मक व नकारात्मक दोनों ही पहलू मौजूद हैं। जब इसके द्वारा आनंद की प्राप्ति होती है तो यह सकारात्मक है, अन्यथा जब यह चोट पहुंचाए, शोषर् िकरे और अपमान का कारर् िबने तो इसे नकारात्मक माना जाता है।

सेक्स करने के कई अर्थ हो सकते हैं। सामान्यतः इसका अर्थ कामुक भावनाओं के शारीरिक प्रदर्शन से लिया जाता है। इसे पुरुष व स्त्री, दो पुरुषों या दो महिलाओं के बीच की आत्मीयता या समीपता के रूप में संदर्भित किया जाता है। केवल पुरुष के लिंग का महिला की योनि में प्रवेश करना ही सेक्स करना नहीं है।

0 सेक्स एक घटना या क्रिया (शारीरिक) है।

0 सेक्स कई किस्म का होता है, लेकिन कुछ बातें ऐसी हैं जो सभी किस्म के सेक्स में मौजूद हैं। 

0 सेक्स में भेदन शामिल हो भी सकता है और नहीं भी।

0 एक महिला व पुरुष, दो महिलाओं, दो पुरुषों या दो से अधिक लोगों के बीच या अकेले भी (हस्तमैथुन) सेक्स किया जा सकता है।

यौनिकता के छत्र तले ही यौन क्रियाएं भी आती हैं लेकिन यह यौन पहचान या अभिव्यंजना जैसी नहीं होतीं। इसमें यौन गतिविधियां शामिल होती हैं जबकि पहचान और अभिविन्यास का संबंध रूझान और प्रसन्नता से है तथा इसका अभिव्यक्ति से यौन गतिविधियों या क्रियाओं जैसा संबंध नहीं है। इन क्रियाओं का उपयोग व्यक्ति की निजी पसंद पर निर्भर करता है जो प्रत्येक व्यक्ति में भिन्न होती है।

यौन क्रियाओं की विधियां 

1. हस्तमैथुन सबसे आम यौन क्रिया है। एकल हस्तमैथुन सेक्स की सबसे सुरक्षित विधि है क्योंकि इसमें गर्भ ठहरने या यौन रोगों का कोई खतरा नहीं होता।

2. दो या अधिक लोगों के बीच यौन आनंद के हेतु अपने या एक दूसरे के जननांग को उत्तेजन करना पारस्परिक हस्तमैथुन की श्रेर्ीि में आता है।

3. योनि-शिश्न संभोग का आमतौर पर अर्थ होता है किसी महिला की योनि में पुरुष का लिंग प्रविष्ट होना। सेक्स की इस विधि से गर्भ ठहर सकता है।

4. मुख मैथुन का अर्थ है एक व्यक्ति का मुख दूसरे व्यक्ति के गुप्तांग ( लिंग, योनि या गुदा) पर होना। इससे गर्भ तो नहीं ठहर सकता लेकिन इसमें रोग होने का खतरा होता है। 

5. प्रायः शिश्न-गुदा संभोग उसे कहते हैं जब किसी पुरुष का लिंग किसी की गुदा या गुदा छिद्र में प्रवेशित हो।

6. फोरप्ले (संभोग पूर्व क्रीड़ा) का उद्देश्य यौन उत्तेजना है, लेकिन इसका ध्येय हमेशा यही नहीं होता।

7. स्पर्श

8. चुम्बन

9. सहलाना

10. छेड़छाड़ करना

11ण्वर्चुअल सेक्स (साइबर सेक्स, फोन सेक्स, गंदी बातें)

लिंग और सेक्स भेद 

अधिकांश व्यक्ति स्त्री या पुरुष के रूप में जन्म लेते हैं और गुप्तांग देखकर ही हमारे लिंग की पहचान हो जाती है। लेकिन हर संस्कृति में पुरुष व स्त्री की पहचान के अलग पैमाने हैं जिनके आधार पर उनकी भूमिका और जिम्मेदारी निर्धारित होती हैं। जिस शब्द से समाज स्त्री व पुरुष के बीच भेद करता है वही उनकी सामाजिक-सांस्कृतिक परिभाषा बनती है। जन्म के साथ ही लड़कियों व लड़कों के लिए निर्दिष्ट सामाजिक और सांस्कृतिक प्रारूप ही लैंगिकता है।

सेक्स एक जैविक क्रिया है। यह जननांगों के दृष्ट और शरीर रचना व प्रजनक कार्यों से संबंधित अदृष्ट भेदों से संबंध रखता है। लिंग सामाजिक-सांस्कृतिक भूमिका में पौरूष व नारित्व संबंधी विशेषताओं, व्यवहार स्वरूप, भूमिकाओं व जिम्मेदारियों को दर्शाता है।

लिंग संस्कृति निर्देशित है इसलिए परिवर्तनशील है लेकिन सेक्स सनातन है। उदाहरर् िके लिए, हर प्रान्त और प्रत्येक काल में कपड़े पहनने की पद्धति भिन्न होती है, कुछ इलाकों में पुरुष सलवार-कुरता पहनते हैं जबकि कई अन्य स्थानों पर इसे महिलाओं का पहनावा माना जाता है।

सेक्स व्यक्तिगत गुर् िहैं जबकि लिंग प्रर्ािलीगत- सांस्कृतिक संदर्भ में पुरुषों और महिलाओं के लिए लिंग आधारित मानदंड निश्चित हैं। जबकि महिलाओं और पुरुषों का भेद कानून और धर्म जैसी विभिन्न प्रर्ािलियों में लिखित और प्रतिबिंबित होता है। 

सेक्स में पदानुक्रम नहीं है, लिंग में पदानुक्रम मौजूद है- यह विभिन्न स्तरों पर महत्व से संबंधित है। इसी कारर् िपुरुष को कमाऊ होने के कारर् िमजबूत और साहसी माना जाता है। 

सेक्स को ऐच्छिक शल्य चिकित्सा के द्वारा ही परिवर्तित किया जा सकता है। जबकि लिंग की भूमिका समय और पीढ़ियों के बदलाव के साथ लगातार विकसित होती जाती है। उदाहरर् िके लिए, पहले महिलाएं केवल घरेलू गतिविधियों को निपटाने के काबिल ही मानी जाती थीं, लेकिन आज कल महिलाएं भी परिवार के पोषर् िके लिए धनार्जन का कार्य कर रही हैं।

सेक्सुएलिटी यानि यौनिकता की परिभाषा

मनुष्य की यौनिकता को परिभाषित करें तो यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके द्वारा व्यक्ति अपने यौन अस्तित्व को अनुभव और व्यक्त कर सकता है। मनुष्य की स्वयं की स्त्री या पुरुष रूप में पहचान उसकी यौनिकता का ही हिस्सा हैं, क्योंकि यही वो क्षमता है जिनका उपयोग वो काम संबंधी अनुभव लेने व प्रतिक्रियाओं में करते हैं। व्यक्ति यौन गतिविधियों या यौन कल्पनाओं में संलग्न हो या नहीं, यौनिकता सदा उसके अस्तित्व का एक अनिवार्य हिस्सा रहेगी। इसे समझने के लिए टीना और राजेश की कहानी देखिए, जहां वो दोनों यौनिकता के मुद्दे पर संघर्षरत हैं।

टीना और राजेश 

कान्वेंट स्कूल में पढ़ने वाली लड़की टीना एक बार टीवी देखते समय विचार करने लगी कि यदि वो अपने माता पिता से यौनिकता संबंधी प्रश्न पूछे तो वो किस तरह की प्रतिक्रिया व्यक्त करेंगे। वो किशोरावस्था में थी, इसलिए वो अपनी मां से इस संबंध में बहुत से प्रश्न पूछना चाहती थी, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया और अपने यौन जीवन को केवल इसलिए दबा दिया कि कहीं उसे ‘चरित्रहीन’ होने का तमगा ना मिल जाए। जबकि हाईमन, कौमार्य, प्रेम और समलैंगिक जैसे शब्द उसे भी चिंतित करते थे । इसी दौरान, उसके बड़े भाई राजेश के मन में अपने अस्तित्व के प्रति एक  विचित्र प्रकार की अनुभूति ने जन्म ले लिया उसे लगता था कि वो असल में एक लड़की है जो लड़के के शरीर में कैद हो गई है। जब कभी वो अपनी बहन टीना के कपड़े पहन लेता तो उसके माता पिता उसकी पिटाई कर देते, इस सजा का असर यह हुआ कि वो और भी बेचैन व व्याकुल हो गया। राजेश  निराशापूर्वक कहता है ‘उन्होंने बिना किसी बात के मेरी पिटाई क्यों की?’ उन्हें तो इस दुविधा से बाहर निकलने में मेरी मदद करनी चाहिए थी जिससे मैं एक सामान्य लड़का बन सकूं।

 उसने एक पत्रिका में पढ़ा था कि समाज में होमोसेक्सुएलिटी और बाइसेक्सुएलिटी को हैट्रोसेक्सुएलिटी की तरह सामान्य दृष्टि से नहीं देखा जाता। इसके बाद से वो अपने भविष्य को लेकर बहुत चिंतित रहने लगा क्योंकि वह खुद भी अन्य लड़कों के प्रति आकर्षर् िमहसूस करता है। 

यदि टीना और राजेश के माता पिता अपने बच्चों की यौनिकता और इसके विकास को समझ पाते तो उनके बच्चों का जीवन कुछ अलग ही होता। 

मनुष्य की यौनिकता आजीवन उसका केंद्रीय पहलू बनी रहती है इसमें सेक्स, लिंग भेद व भूमिकाएं, यौन अभिविन्यास, प्रेमासक्ति, आनंद, अंतरंगता और प्रजनन भी शामिल होते हैं। यौनिकता का अनुभव और अभिव्यक्ति वैचारिक, काल्पनिक, ऐच्छिक, विश्वास, व्यवहार, मूल्यों, प्रथाओं और भूमिकाओं  व संबंधों में व्यक्त किए जाते हैं। यौनिकता में यह सभी आयाम समाहित होते  हैं हालांकि इसे हमेशा इन्हीं के द्वारा अनुभव व अभिव्यक्त नहीं किया जाता। यौनिकता पर  जैविक, मानसिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक, नैतिक, कानूनी, ऐतिहासिक, धार्मिक व आध्यात्मिक कारकों का प्रभाव भी पड़ता है।

यौनिकता मनुष्य जीवन का ऐसा घटक है जिसका प्रभाव हर आयु में सभी के ऊपर पड़ता है। यह जानने के लिए कि यह किस तरह सभी के जीवन को प्रभावित करता है आगे पढ़िए। सच्चाई यह है कि यौनिकता से सब प्रभावित हैं।

नैसर्गिक रूप से सभी मनुष्य कामुक होते हैं, और यह स्थिति आजीवन बनी रहती है चाहे वो यौन क्रियाओं में संलग्न हों या नहीं हों। किसी भी व्यक्ति की यौनिकता शरीर के किसी विशेष भाग तक ही सीमित नहीं रहती, यह आकार, आकृति, रंग या वजन के परे अपने आप में संपूरर््ि शरीर है। यौनिकता शारीरिक से अधिक मानसिक होती है। व्यक्ति के विचार, कल्पना, पसंद और नापसंदगी ही हैं जो मनुष्य को कामुक बनाते हैं। यौनिकता मनुष्य की अभिव्यक्ति का माध्यम है। आपकी यौनिकता आपके कार्यों के अतिरिक्त विचारों, कल्पनाओं, भावनाओं, इच्छाओं और भाषा के द्वारा भी व्यक्त होती है। हम यौनिकता को व्यक्तिगत या सामाजिक जिस उद्देश्य से भी अपनाते हैं यह उसी में समाहित हो जाती है। जब यह आम सहमति, परस्पर सम्मान और सुरक्षित संबंधों द्वारा  सकारात्मक रूप से अभिव्यक्त होती है तो इससे जीवन में सुख, स्वास्थ्य और गुर्वित्ता में वृद्धि होती है।

हमारी यौनिकता हमारे कपड़े पहनने के तरीके, चलने, बातें करने और लोगों से संबंध बनाने में भी व्यक्त होती है। इससे हम अपने आप को जीवंत और प्रफुल्लित महसूस करते हैं। यौनिकता का प्रभाव भावनाओं के अतिरिक्त, हमारे स्वास्थ्य और रिश्तों पर भी पड़ता है। अधिकांश समाजों में, यौनिकता को सांस्कृतिक चुप्पी का कफन पहना दिया जाता है।

यौनिकता संबंधी कुछ तथ्य

0ऽ यौनिकता प्रत्येक व्यक्ति के व्यक्तित्व का हिस्सा है।

0ऽ महिलाओं व पुरुषों दोनों का ही स्वभाव समान रूप से कामुक हैं।

0ऽ यौनिकता की अभिव्यक्ति सामाजिक, सांस्कृतिक कारकों से प्रभावित हो सकती है। यह कारक किस तरह हमारी यौनिकता पर असर डालते हैं इसके बारे में अधिक जानकारी के लिए यौनिकता के महत्व व मानदंड को जानें।

0 हम यौनिकता का अनुभव केवल कम उम्र में ही नहीं, बल्कि जीवन भर करते हैं।

0ऽसमान और विपरीत लिंग के मनुष्यों के बीच आकर्षर् िसामान्य बात है। यौन विविधताओं के बारे में अधिक पढ़ें।

0ऽहमें अपने यौन अभिविन्यास के साथ जीने का पूरा अधिकार है। 

0 किशोरवय का क्षर्किि प्रेम, आसक्ति, नायक पूजा एक किशोर के विकास की सामान्य प्रक्रिया है। प्रेम और सेक्स के विकास के बीच यौनिकता कई अवस्थाओं से गुजरती है। 

यौनिकता को समझना क्यों जरूरी

हमारे समाज में एक मिथक बहुप्रचलित है कि प्रेम से जग जीता जा सकता है।  संतुष्टि और स्वस्थ रिश्ता बनाए रखने के लिए हमें केवल प्रेम की ही आवश्यकता होती है। लेकिन हम अपनी व अपने साथी कि यौनिकता को बिना जाने, अपने शारीरिक क्रियाकलापों की जानकारी और यौनिकता के मानसिक प्रभावों के प्रति जागरूकता के बिना कैसे एक स्वस्थ और परस्पर संतोषजनक रिश्ते को स्थापित कर सकते हैं।

सभी संस्कृतियों और समाज में जीवन भर पूरी तरह स्वस्थ रहने में  यौनिकता और प्रजनन स्वास्थ्य केन्द्रीय पहलू हैं, इसलिए मनुष्य के विकास में भी यह महत्वपूरर््ि  है। जानकारी के बिना लिए जाने वाले सभी सेक्स संबंधी निरर््ियों के ऊपर एचआईवी की तलवार लटकती रहती है इस कारर् िइसका महत्व और भी बढ़ गया है।

प्राप्त प्रमार् िदर्शाते हैं कि युवाओं के बीच यह खतरा कहीं अधिक है इसलिए यह आवश्यक हो गया है कि वे अपनी यौनिकता को पहचान कर स्वयं को सुरक्षित रखें और एक स्वस्थ वयस्क जीवन व्यतीत करें। युवाओं की यौनिकता पर विशेष रूप से ध्यान देना क्यों आवश्यक है, इस संबंध में अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त करनी चाहिए।

उपरोक्त जानकारी के बाद हम यह तो समझ ही गए हैं कि हमें यौनिकता को समझना क्यों जरूरी है लेकिन हमारी अपनी मान्यताएं व मानदंड हमें इस पर चर्चा करने में बाधक बनते हैं। यौनिकता संबंधी मान्यताओं व मानदंडों पर सामाजिक-सांस्कृतिक कारकों का बहुत अधिक असर है। हमने इन मान्यताओं व मानदंडों को किस तरह विकसित  किया है। 

   युवाओं में यौनिकता का विकास

मानव विकास शारीरिक, व्यवहार, संज्ञानात्मक और भावनात्मक विकास और परिवर्तन की एक आजीवन चलने वाली प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया के दौरान प्रत्येक व्यक्ति ऐसे नजरिए और मूल्यों को विकसित करता है जो उसके विकल्पों, रिश्तों और विवेक के निर्मित होने में सहायता देते हैं। यौनिकता भी ऐसी ही आजीवन जारी रहने वाली प्रक्रिया है। शिशु, बच्चे, किशोर और वयस्क सभी का अस्तित्व यौनिक है। जितना आवश्यक एक युवा का शारीरिक, भावनात्मक और संज्ञानात्मक विकास करवाना है, उतना ही महत्वपूरर््ि एक किशोर के यौन विकास की नींव रखना भी होता है। 

वयःसंधी के दौरान यौन आकर्षर् िकी तरंग सी आती है जो किशोरावस्था के दौरान जारी रहती है। यौनिकता में इस वृद्धि के कई कारर् िहोते हैं, जिनमें शारीरिक बदलाव व उनके प्रति जागरूकता, सेक्स हार्मोन के स्तर में बढोतरी और सेक्स के प्रति सामाजिक अवधारर्ाि और व्यस्क होने पर निभाई जाने वाली लैंगिक भूमिका का पूर्वाभ्यास शामिल होते हैं। 

विभिन्न आयु समूहों में प्रेम और यौनिकता की अभिव्यक्ति की आवश्यकताएं भिन्न हो सकती हैं। बच्चों की यौनिकता का अर्थ खोज, उत्सुकता और खेल-खेल में सीखने व वयस्कों के व्यवहार की नकल होता है। एक व्यक्ति के मनोयौनिक विकास में यौनिकता एक महत्वपूरर््ि कारक है। इसका संबंध व्यक्ति और संस्कृति दोनों ही के साथ है।

अपनी यौन भावनाओं और क्रियाओं का स्वयं मूल्यांकन करना ही यौन आत्म-अवधारर्ाि है और यौन आत्म-अवधारर्ाि का विकास करना किशोरावस्था का मुख्य विकास कार्य है। किशोरावस्था के दौरान युवाओं का झुकाव अपनी व्यस्कता की पहली काम भावना की अनुभूति और यौन आचरर् िका परीक्षर् िकरने की ओर हो जाता है, और वो अपनी लंैंगिक पहचान और यौन अभिविन्यास के प्रति गहरा बोध विकसित कर लेते हैं।

शुरूआत में बहुत से किशोर ऐसी स्थिति से गुजरते हैं जहां वो अपने ही लिंग के व्यक्ति के प्रति आकर्षित होने लगते हंैं लेकिन अंततः उनका आकर्षर् िविपरीत लिंग के प्रति हो जाता है। यह विकसित होने की एक सामान्य प्रक्रिया होती है जिसमें युवा ‘जान जाते’ हैं कि उनका आकर्षर् िअपने ही लिंग की ओर है जो कभी बदलता नहीं है। क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति में यौन बोध और आकर्षर् िके विकसित होने का वेग भिन्न होता है, इसलिए यह जरूरी है कि व्यक्ति अपनी यौनिकता को उसी वेग पर खोजे जिस में उसे सुविधा महसूस हो। हालांकि यौन पहचान के स्व प्रकटीकरर् िकी चुनौती भयावह हो सकती है, लेकिन स्वाभाविक अनुभूतियों को छुपाना उससे भी कठिन हो सकता है। बहुत से लोगों को अपने प्रियजनों को यह बताना कि वो गे, लेस्बियन या द्विलिंगी है एक सकारात्मक अनुभव रहा है।

युवाओं ने समलैंगिकता के बारे में जो भी देखा, सुना और पढ़ा है उसके आधार पर और इसके साथ ही अपने स्वयं के अनुभव व अपने परिचितों के अनुभव और इस बारे में स्वयं की अनुभूति से इसका काल्पनिक चित्र बना लेते हैं। वो समझते हैं कि समलैंगिक होने का अर्थ है अपने ही लिंग के व्यक्ति के प्रति यौन भावनाएं रखना और यौन भोग करना। वो यह भी सोच सकते हंैं कि इसका अर्थ अप्रसन्न रहना है क्योंकि ऐसे लोग अपने मित्रों, साथियों और परिवार द्वारा ठुकरा दिए जाते हैं। इन्हें प्राप्त होने वाली अधिकांश सूचनाएं गलत होती हैं। ये रूढ़ीवादी समलैंगिक होते हैं। इसलिए जब युवा स्वयं को समझने और अनुभव करने में इन बातों का उपयोग करते हंैं तो उनकी यह कोशिश बेकार जाती है। इन बातों का संबंध समलैंगिकता से अधिक विषमलैंगिकता के प्रति पूर्वाग्रह के रूप में साफ दिखाई देता है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि सेक्स और सेक्सुएलिटी दो अलग-अलग चीजें हैं, जिनके बारे में पूरी जानकारी होना आवश्यक है।

J.K.Verma Writer

9996666769

jkverma777@gmail.com

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