homosexuality and unnatural sex relations- 1 अप्राकृतिक यौन संबंध या समलैंगिकता-1

 अप्राकृतिक यौन संबंध या समलैंगिकता  

स्त्री-पुरुष के बीच प्राकृतिक विधि से होने वाले यौन संबंधों को छोड़कर शेष सभी प्रकार के यौन संबंध अप्राकृतिक यौन संबंध या समलैंगिकता के दायरे में आते हैं। ऐसे संबंधों में पुरुष का पुरुष के साथ और स्त्री का स्त्री के साथ सेक्स करना, पुरुष का स्त्री के साथ अप्राकृतिक ढंग से मैथुन करना, मौखिक यौन संबंध, पशु के साथ कुकर्म या किसी बच्चे के साथ दुष्कर्म आदि शामिल हैं। भारत में अब आपसी सहमति से दो बालिग लोगों में समलैंगिक संबंध बनाना अपराध की श्रेणी में नहीं आता। लेकिन मर्जी के खिलाफ ऐसे संबंध बनाना या बच्चे, पशु इत्यादि के साथ अप्राकृतिक संबंध बनाना दंडनीय अपराध है तथा इसके लिए सजा का प्रावधान है, जिसका विस्तृत विवरण दिया जा रहा है।

तीन प्रकार के लोग

आम तौर पर इस तरह के संबंधों में मोटे तौर पर तीन तरह के लोग प्रवृत होते हैं। पहली प्रकार के लोग वे होते हैं, जिनमें जन्मजात कोई शारीरिक, मानसिक या मनोवैज्ञानिक विकृति होती है। दूसरी प्रकार के लोग वे हैं, जिन्हें कुछ खास हालात या विवशताएं ऐसे संबंधों की ओर धकेल देती हैं और तीसरी प्रकार वे लोग हैं, जो सेक्स में कोई नया प्रयोग करने, ऐशपरस्ती या फिर धन और ताकत के बल पर मनमानी करने के लिए ऐसे संबंध आजमाते हैं। ये तीनों ही प्रकार लोग कोई आज पैदा नहीं हुए, बल्कि युगों-युगों से पृथ्वी पर मौजूद हैं। सेक्स के सबसे पुराने महाग्रंथ कामसूत्र में महर्षि वात्स्यायन ने ऐसे लोगोंे का खुलकर जिक्र किया है, वहीं अनेक प्राचीन धर्मग्रंथों, पुराणों व कथाओं में भी इस तरह के सेक्स संबंधों का जिक्र मिलता है, जिसका विस्तृत विवरण  दिया गया है।

मगर भारत वह देश है, जिसमें ऐसे विकृत संबंधों की चर्चा करता तो दूर, प्राकृतिक और मर्यादित सेक्स पर भी खुली चर्चा करना परंपराओं का उल्लंघन माना जाता है। इसके बावजूद सच्चाई यह है कि सेनाओं, जेलों और हॉस्टलों जैसे  स्थानों पर अप्राकृतिक यौन संबंध या समलैंगिक संबंध प्रायः हमेशा से स्थापित होते रहे हैं। 

कब और क्यों बने कानून

ऐसे मामलों की गंभीरता को देखते हुए विश्व में पहली बार सन् 1290 में इंग्लैंड के फ्लेटा में अप्राकृतिक यौन संबंध के किसी मामले पर सरकार सख्त हुई थी। ब्रिटेन और इंग्लैंड में 1533 में बगरी (अननैचरल रिलेशन) एक्ट बनाया गया था और इसके तहत फांसी का प्रावधान किया गया था। 1563 में क्वीन एलिजाबेथ-प्रथम ने इसे फिर से लागू कराया। 1817 में बगरी ऐक्ट से ओरल सेक्स को हटा दिया गया और 1861 में फांसी का प्रावधान भी हटा दिया गया। इसके बाद वर्ष 1860 में लार्ड मैकाले ने भारतीय दंड संहिता की धारा 377 का मसौदा तैयार किया था। इसमें इन्होंेने अप्राकृतिक संबंधों के दोषी के लिए दस वर्ष कारावास का प्रावधान किया था। 

उन्होंने मसौदे में साफ लिखा था कि यदि कोई व्यक्ति किसी महिला, पुरुष, बच्चे या पशु के साथ अप्राकृतिक रूप से यौन संबंध, गुदामैथुन ( स्वेच्छा से ही सही) स्थापति करता है तो यह अपराध है।  इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने अप्राकृतिक संबंधों को लेकर कठोर कानून बनाया था। समलैंगिकता को लेकर तो यह सरकार और भी सख्त हो गई थी। वर्ष 1861में इस सरकार ने समलैंगिक संबंधों को गैर कानूनी घोषित किया था तथा ऐसे संबंध अपनाने वालों के लिए भारतीय दंड संहिता के तहत आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान किया था। बाद में वर्ष 1935 में इस धारा में सुधार किया गया और इसमें मुखमैथुन भी जोड़ दिया गया।  हालांकि भारत सरकार ने दो व्यस्क लोगों में आपसी रजामंदी से समलैंगिक संबंधों को मंजूरी दे दी है, लेकिन अन्य मामलों में भारतीय दंड संहिता की धारा 377 आज भी भारतवर्ष में लागू है तथा इसके लिए कठोर सजा का भी प्रावधान है।

कैसे बना हॉट इश्यू

बड़ी बात यह है कि अप्राकृतिक यौन संबंध या समलैंगिकता भारतीय समाज में वर्ष 2000 तक एक छिपा हुआ विषय ही रही। लेकिन वर्ष 2001 में यह एक हॉट इश्यू बन गया। हुआ यूं कि समलैंगिकों के अधिकारों के लिए लड़ने वाले नाज फाउंडेशन ने जनहित याचिका दायर कर भारत सरकार से मांग कर दी कि व्यस्कों के बीच परस्पर सहमति से बने समलैंगिक संबंधों को वैध किया जाए। 2 सितंबर 2004 को इस विषय पर चर्चाएं और गर्म हो गईं क्योंकि इस दिन दिल्ली उच्च न्यायालय ने नाज फाउंडेशन की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेर्ीि से बाहर रखने की मांग की गई थी। लेकिन 3 अप्रैल 2006 को उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय को इस मामले पर पुनर्विचार करने का निर्देश दे दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि  दो जुलाई 2009 को दिल्ली उच्च न्यायालय ने व्यस्कों के बीच परस्पर सहमति से बने समलैंगिक संबंधों को वैध घोषित कर दिया। इस पर पूरे देश में बवाल मच गया तथा गली-गली में इस पर चर्चाएं होने लगीं। फिर इस फैसले के खिलाफ याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लगाई गईं और अंततः 11 दिसंबर, 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने जन भावनाओं का सम्मान करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को पलट दिया। और भारत सरकार को साफ कह दिया कि अगर धारा 377 को खत्म करना जरूरी है तो वह इस पर कानून बनाए। तब यानि अप्राकृतिक यौन संबंधों और समलैंगिकता पर फिर से पुराना कानून लागू हो गया। 

सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2017 में दिए एक फैसले में निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार बताया और साथ ही, सेक्शुअल ओरियंटेशन को निजता का अहम हिस्सा माना। इसी के साथ, सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने जुलाई 2018 में धारा 377 के खिलाफ दाखिल याचिकाओं को सुनना शुरू किया और एक ऐसे फैसले की ओर कदम बढ़ाए जो इतिहास बदलने वाला था। 

इसके बाद 6 सितंबर 2018 को कोर्ट ने धारा 377 के तहत समलैंगिक संबंधों को वैध करार देते हुए कहा कि सेक्शुअल ओरियंटेशन प्राकृतिक होता है और लोगों का उसके ऊपर कोई नियंत्रर् िनहीं होता। हालांकि, कोर्ट ने नाबालिगों, जानवरों और बिना सहमति के बनाए गए संबंधों पर इस प्रावधान को लागू रखा है। फैसला देते हुए जस्टिस इंदू मल्होत्रा ने यहां तक कहा कि समाज को स्ळठज्फ और उनके परिवारों से उन्हें इतने साल तक समान अधिकारों से वंचित रखने के लिए माफी मांगनी चाहिए। 

    अप्राकृतिक यौन संबंधों और समलैंगिकता का मुद्दा जिस तरह भारत में गर्माया हुआ है और इस पर अन्य देश भी नजर गड़ाए हुए हैं, हमारे सामने यक्ष प्रश्न यह आ खड़ा हुआ कि कि यह मुद्दा अचानक हॉट इश्यू कैसे बन गया? भारत में अचानक 35 लाख एलजीबीटीक्यू देखते ही देखते प्रकाश में कैसे आ गए और उन्होंने अपना क्वियर ;विचित्र लोग द्ध समाज कब और कैसे बना लिया और सरकार तक पर समलैंगिक संबंधों को वैद्य करने का दबाव कैसे बना लिया? मुट्ठी भर लोग भारत की 120 करोड़ की जनता पर कैसे हावी हो गए? इस तरह के अनेक प्रश्नों के उत्तर देने के लिए और इस विषय से जुड़े अनेक विषयों पर विस्तार से प्रकाश डालने के लिए ही यह BLOG लिखी गई। इस BLOG को लिखने के लिए लंबा शोध व अध्ययन किया गया तथा अनेक चौंकाने वाले तथ्य सामने लाने का प्रयास किया गया। 

क्या है इस BLOG में

0 इस BLOG में अप्राकृतिक यौन संबंधों व समलैंगिकता की परिभाषा व प्राचीन इतिहास का जहां वर्णन किया गया है, वहीं विस्तार से बताया गया है कि अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने वाले लोग कितने प्रकार के होते हैं। इस BLOG मंे गे, लेस्बियन, बाईसेक्सुअल, ट्रांससेक्सुअल, मैट्रोसेक्सुअल, हेट्रोसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर पेनसेक्सुअल, जू-सेक्सुअल, कनिलिंगस, फलेशियो पॉलीसेक्सुअल, एसेक्सुअल व इंटरसेक्स सहित हर तरह के अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने वालों पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। इसके साथ ही व्यक्ति की पैराफीलिक अवस्था का भी वर्णन किया गया है तथा फेटिशिज्म, ट्रांसवेस्टिज्म, एग्जीबिशनिज्म, वोयुरिज्म, सेडिज्म, फ्रोटेज, गेरेटोफिलिया, नेक्रोफिलिया व हाईपीक्सिफीलिया आदि पर भी विस्तार से प्रकाश डाला गया है।

इस BLOG  में इस बात का शोध प्रस्तुत किया गया है कि ऐसे संबंधों की इच्छा आखिर क्यों बलवती होती है तथा इस प्रकार के संबंध फैलाने के लिए कौन लोग और साधन सीधे तौर पर जिम्मेवार हैं? अप्राकृतिक यौन संबंध या समलैंगिकता स्वास्थ्य के लिए कितनी घातक है तथा इससे कौन-कौनसे रोग हो सकते हैं, इसका भी विस्तृत विवरण इस BLOG में है। ऐसे संबंधों के कानूनी, सामाजिक, धार्मिक और सामाजिक पहलुओं पर भी विस्तार से प्रकाश डाला गया है। इस BLOG में ज्योतिष शास्त्र की धारणाओं को भी समाहित किया गया है, जो यह कहता है कि ऐसे संबंधों के लिए ग्रह-नक्षत्र जिम्मेवार होते हैं।

प्रस्तुत BLOG में अप्राकृतिक यौन संबंधों से फैलते क्राइम को भी जहां कलमबद्ध किया गया है, वहीं सेक्स टॉयज के फैलते बाजार को भी प्रकाश में लाया गया है। इसके साथ ही उन फिल्मों व टीवी सीरियलों को भी खंगाला गया है, जिसमें इस तरह के विकृत संबंधों को वरीयता दी गई है। इसके साथ ही उन सेलेब्रिटीज का भी खुलासा गया गया है, जिन्होंने समलैंगिक विवाह कर रखे हैं और बच्चे गोद भी ले रखे हैं।

इस BLOG में बताया गया है कि अप्राकृतिक यौन संबंध या समलैंगिक संबंध बनाने वालों की मनोवृति कैसी होती है और यह कैसे बनती है? इसके साथ ही यह भी समझाया गया है कि सेक्स और सेक्सुएल्टी में क्या फर्क होता है?  इस BLOG में सेक्स शब्दकोष भी दिया गया है ताकि इस विषय पर शोध कार्य करने वालों को आसानी हो।

0 इस इस BLOG में इस विषय पर भी चिंतन किया गया है कि यौन शिक्षा अप्राकृतिक सेक्स के रूझान को बदल पाने में सक्षम है या नहीं? साथ ही इंटरनेट और सोशल नेटवर्किंग साइट्स से फैलते अप्राकृतिक यौन संबंधों पर भी विस्तृत चर्चा की गई है।

0 जेलों और सेनाओं में लगातार फैल रहे अप्राकृतिक यौन संबंधों और समलैंगिकता को आखिर कैसे रोका जा सकता है, इस पर भी सुझाव दिए गए हैं, वहीं ऐसे संबंधों से पीड़ितों के लिए फैल रहे नीम हकीमों के बाजार व नशे के कारोबार की भी विस्तार से व्याख्या की गई है।

0 इस BLOG के अंत में अप्राकृतिक यौन संबंधों व समलैंगिकता से जुड़े अनेक प्रश्नों का उत्तर दिया गया है ताकि शंकाओं का समाधान हो सके।

इस इस BLOG को लंबे शोध, गहन अध्ययन व मनन के बाद तैयार किया गया है तथा इस बात का पूरा प्रयास किया गया है कि अप्राकृतिक यौन संबंधों और समलैंगिकता से जुड़ा कोई भी मुद्दा छूट न जाए। इस विषय पर भारत-वर्ष में संभवतः यह  BLOG है, जिसे पढ़ने के बाद पूछने को कुछ नहीं बचता। हमें पूरी आशा है कि यह इस BLOG जहां अप्राकृतिक यौन संबंध व समलैंगिक संबंध बनाने वालों का पूरा मार्गदर्शन करेगी, वहीं आम लोगों में भी जागरूकता का संचार करेगी। इसके साथ ही हमारा यह भी मानना है कि इस विषय का अध्ययन करने वालों व शोधार्थियों के लिए भी यह इस BLOGबेहद सहयोगी साबित होगी। 

Copywrite -जे.के.वर्मा 

Writer Contact No. 9996666769

jkverma777@gmail.com




टिप्पणियाँ

Homosexuality and Unnatural Sex Relations : J..K.Verma

Homosexuality and Unnatural Sex Relations-22 : अप्राकृतिक यौन संबंधों व समलैंगिकता से जुड़े सवाल-जवाब

Homosexuality and Unnatural Sex Relations-23 : समलैगिंक बनो और जो कुकर्म करने हैं, करो

Homosexuality and Unnatural Sex Relations-21 : अप्राकृतिक संबंधों के लिए नशीली दवाएं, इंजेक्शन व उत्तेजक दवाइयां