Homosexuality and Unnatural Sex Relations-6 : समलैंगिक हो जाना कोई बीमारी नहीं है
हमने पिछले Blog में पढ़ा कि अप्राकृतिक यौन संबंध रखना या समलैंगिक हो जाना कोई बीमारी नहीं है। यह केवल एक रूझान है। हमने यह भी पढ़ा कि अनेक लोग प्राकृतिक रूप से अप्राकृतिक यौन संबंधों के प्रेमी होते हैं तो कुछ लोग हालातवश भी इन संबंधों की ओर आकर्षित हो जाते हैं।
लेकिन अगर वर्तमान युग के परिपेक्ष्य में अप्राकृतिक यौन संबंधों का गहनता से विश्लेषण किया जाए तो पता चलता है कि अधिकांश लोग प्राकृतिक तौर पर अप्राकृतिक संबंधों की ओर आकर्षित नहीं होते, उनकी तो ऐसे संबंधों में कोई रुचि ही नहीं होती, वे तो ऐसे संबंधों के बारे में सोचते ही नहीं, लेकिन उनका रूझान ऐसे संबंधों की ओर किया जाता है? उन्हें आकर्षित किया जाता है, उकसाया जाता है और उनके सैक्स संबंधों का रूख जान-बूझकर प्राकृतिक से अप्राकृतिक की ओर मोड़ा जाता है ताकि ऐसा करने वालों का उल्लू सीधा हो सके।
इस अध्याय में हम ऐसे लोगों व माध्यमों के बारे में जानेंगे, जो अप्राकृतिक यौन संबंधों को बढ़ावा देने के लिए दिन-रात काम कर रहे हैं। जो इंसान को सेक्स का कीड़ा बनाना चाहते हैं और जो चाहते हैं कि इंसान केवल एक ही प्रकार के सैक्स संबंधों में ही न उलझा रहे, बल्कि सेक्स की विभिन्न विधाओं का ज्ञान प्राप्त करके, उनमें लिप्त हो जाए।
1. इंटरनेट
आज इंटरनेट की पहुंच पर्सनल कंप्यूटर व लेपटॉप आदि से निकलकर मोबाइल फोन तक पहुंच चुकी है। इसकी सेवाएं अब बूढ़े से लेकर बच्चे तक उपलब्ध हो गई हैं। लेकिन इंटरनेट का लगभग 75 प्रतिशत प्रयोग आज पोर्न यानि अश्लीलता देखने के लिए किया जा रहा है। एक से बढ़कर एक अप्राकृतिक यौन संबंधों पर बनी कामुक फिल्में विभिन्न साइटों पर आसानी से उपलब्ध हैं, जिसे बच्चे से लेकर बूढ़े तक देख रहे हैं।
अगर आप यह सोचते हैं कि ये कोई साधारण अश्लील फिल्में या वीडियो हैं, तो आप गलतफहमी में हैं। इन फिल्मों में गे सेक्स, लेस्बियन सेक्स, हैटरोसेक्सुअल सेक्स, बाईसेक्सुअल सेक्स, इंटरसेक्स, ग्रुप सेक्स और अनीमल सेक्स से लेकर हर तरह के सेक्स पर आधारित कामुक फिल्में और वीडियो मौजूद हैं। केवल इतना ही नहीं, आपको यह सोचकर शर्म महसूस होगी कि इनमें फैमिली सेक्स तक मौजूद है यानि पिता-पुत्री, मां-पुत्र, भाई-बहन आदि का सेक्स भी आम दिखाया जाता है। गुरु का शिष्या से, डॉक्टर का नर्स से, महात्मा का शिष्या से, घरेलू नौकरानियों से या फिर भिखारियों तक से सेक्स इन फिल्मों में मिल जाना आम बात है। आप बस कल्पना भर कीजिए कि आप इंटरनेट पर किसका सेक्स किसके साथ और कहां देखना चाहते हैं, आपको वैसी ही फिल्म देखने को उपलब्ध हो जाएगी। आप मंदिर और चर्च जैसे पवित्र स्थानों पर भी सेक्स देख सकते हैं। इन फिल्मों में अप्राकृतिक यौन संबंधों की भरमार है तथा ऐसा कुछ भी दिखाई दे सकता है, जिसकी आपने सपने में भी कल्पना नहीं की होगी। यह सब सभी के लिए आसानी से उपलब्ध है।
आज के कम उम्र के लड़के-लड़कियां भी अपने मोबाइल में न केवल यह सब देखते हैं, बल्कि एक दूसरे को भेजते भी हैं। पहले ये फिल्में व वीडियों केवल विदेशी भाषा में होते थे, अब ये स्थानीय भाषाओं में भी बनाए जा रहे हैं तथा इंटरनेट के माध्यम से प्रसारित किए जा रहे हैं। सरकार को इन पर किसी भी तरह का कोई होल्ड नहीं है। इससे न केवल अप्राकृतिक संबंधों को खुला बढ़ावा मिल रहा है, बल्कि सेक्स क्राइम का ग्राफ भी लगातार बढ़ रहा है। इसके साथ ही यौन रोगियों की संख्या में भी जोरदार बढ़ोतरी हो रही है। भारत के लिए सबसे बुरी बात यह है कि यहां की संस्कृति, परंपराएं और नैतिकता की धज्जियां उड़ रही हैं। बच्चों और युवाओं की मानसिकता इतनी खराब हो रही है कि आज भाई-बहन या पिता-पुत्री के पवित्र संबंधों को भी शक की नजर से देखा जाने लगा है।
यह सब शहरों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि छोटे से छोटे गांवों तक पहुंच चुका है। यानि हर तरह के सेक्स संबंधों को होते हुए देखना आज एक आम बात हो गई है। कहने की जरूरत नहीं है कि ऐसी फिल्में देखकर किशोर मन पर कितना बुरा असर पड़ता है और अप्राकृतिक संबंधों का किस तरह से फैलाव होता है। अब इस तरह की फिल्में कौन लोग बनाते हैं, किन लोगों को लेकर बनाते हैं और किस प्रकार से इनका इंटरनेट के माध्यम से व्यापार करते हैं और इन लोगों पर कोई नियंत्रण क्यों नहीं है, बहुत ही गंभीर विषय है।
आज इंटरनेट पर ऐसी वैबसाइटों की भरमार है, जो आपको हर तरह के सेक्स के लिए पार्टनर उपलब्ध करवाती हैं। जो सेक्स पार्टियों का आयोजन करती हैं, काल गल्र्स और जिगोलो आदि का प्रबंध करती हैं, आपका मनपसंद सेक्स आयोजन करवाती हैं तथा ऐसे पार्टनर्स तलाश करके देती हैं, जो आपकी मनपसंद का हो तथा आपकी पसंद के मुताबिक हर तरह से सेक्स में रूचि लेता हो।
स्वास्थ्य सेवाओं में पलीता
सेन फ्रांसिस्को की सरकार ने पिछले दिनों ऐलान किया कि वह इंटरनेट से सबसे अधिक परेशान है, क्योंकि उसने सरकार की स्वास्थ्य योजनाओं में पलीता लगा दिया है। दरअसल, सरकार की परेशानी की वजह इंटरनेट पर उपलब्ध वे कुछ एडल्ड वेबसाइट हैं, जो विश्व भर के समलैगिंक पुरुषों के बीच बाथ हाउस ऑफ 21 सेंचुरी के नाम से दिनोंदिन लोकप्रिय होते जा रहे हैं।
इस बात पर भी गौर किया जाना चाहिए कि पिछले दिनों सेन फ्रांसिस्को में हुए एक शोध ने सरकार को स्वास्थ्य योजनाओं पर पुनर्विचार के लिए विवश कर दिया है। दरअसल इस शोध में पाया गया है कि हर साल इस देश में लगभग 500 लोग संक्रामक यौन रोग सिफलिस के नए शिकार बने और इसे फैलाने में इंटरनेट डेटिंग की महत्वपूरर््ि भूमिका रही। गौरतलब है कि हाल के वर्षों में सेन फ्रांसिस्को में फैलने वाला यह सबसे बड़ा संक्रामक रोग है , क्योंकि एक वर्ष में इसके रोगियों की संख्या में दस गुनी वृद्धि हुई है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि समलैंगिकों के बीच डेटिंग के लिए पार्टनर की खोज में एडल्ट वेबसाइट सबसे सुविधाजनक साधन के रूप में लोकप्रिय हुआ है और सेन फ्रांसिस्को के समलैंगिक पुरुष इसका धड़ल्ले से उपयोग कर रहे हैं। सेन फ्रांसिस्को के यौन रोग विशेषज्ञ डॉ. जेफ्री क्लूजनर का कहना है कि जिस ढंग से यह रोग फैल रहा है, उसे देखते हुए सरकार को जल्दी ही इंटरनेट पर लगाम कसने की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए।
समलैंगिकों की समस्याओं पर काम करने वाले न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के मनोवैज्ञानिक पेरी हेल्किट्स का कहना है कि इंटरनेट पर उपलब्ध बड़ी संख्या में एडल्ट वेबसाइटों ने अब पार्टनर खोजने का एक बड़ा विकल्प ड्राइंग रूम में ही उपलब्ध करा दिया है और यही कारर् िहै कि समलैंगिकों के बीच सेक्स क्लब, बार, बाथहाउस और एडल्ट बुकस्टोर जैसे पार्टनर खोजने की परंपरागत जगह अब अपना महत्व खोते जा रहे हैं।
यह केवल एक ही देश का उदाहरण दिया गया है। कमोबेश यही स्थिति आज लगभग हर देश में है। भारत में उभयलिंगियों के लिए विशेष तौर से तैयार की गई प्लैनेटरोमियो डॉटकॉम, मंजम डॉटकॉम, गेडिया डॉटकॉम, शाइबी डॉटकॉम, वियर्डटाउन डॉटकॉम, बाइक्युपिड डॉटकॉम जैसे इंटरनेट साइट ढेरों हैं जिन पर विवाहित लोग भी अपनी खुली तस्वीरें जारी करते हैं तथा पार्टनर तलाश करते हैं।
कुछ उदाहरण देखिए
25 वर्षीय सेल्स एक्जक्यूटिव नमित और 32 वर्षीय अंकुश गेडिया डॉटकॉम पर मिले और फिर दोनों होटल के कमरों में मिलने लगे और समलैंगिक संबंध बनाने लगे। इन दोनों का कहना है कि उन्होंने गेडिया डॉट कॉम पर एक दूसरे से सेक्स के बारे में अपनी हर पसंद की खुलकर चर्चा की। दोनों की पसंद मिली और आज दोनों समलैंगिक संबंधों का आनंद ले रहे हैं।
दिल्ली के 40 वर्षीय सुदर्शन भाटिया एक बिजनेसमैन हैं। वे अपने को सांवला, ईमानदार, खिलंदड़ा, और दोस्ताना शख्स बताते हैं। उन्होंने एक बैबसाइट पर अपनी तस्वीरें जारी की हैं और बताया है कि ऐसे लड़के-लड़कियां पसंद हैं जो बाई-सेक्सुअल हों और उन्हें उत्तेजित करें। भाटिया ने यह भी बताया है कि उनकी चार गर्लफ्रेंड (दो विवाहित) और नौ ब्वॉयफ्रेंड हैं। हालांकि उन्हें डर है कि उनकी किशोरवय बेटी कहीं यह वैबसाइट न देख ले और उनके बारे में न जान ले। इसके बावजूद वे अपनी तस्वीरें साइट पर जारी करने से परहेज नहीं करते। इस तरह के बैबसाइटों पर दिखाई देने वाले लगभग 75 प्रतिशत सदस्य खुद को बाई-सेक्सुअल बताते हैं और इनमें से एक-तिहाई विवाहित हैं।
60 वर्षीय रामकिशोर अग्रवाल ने गु्रप सैक्स की एक बैवसाईट पर अपने नंगे फोटो डाले हुए हैं। उन्होंने अपने बारे में भी सब कुछ लिख रखा है कि वे विवाहित हैं या अविवाहित, पतले हैं या मोटे, स्ट्रेट हैं या बायसेक्सुअल और उनकी कल्पनाएं क्या हैं? उन्होंने अपने कल्पनाओं के कॉलम ेमें लिखा है कि वे अनेक नंगे लड़कियों ओर लड़कों के साथ एक कमरे में बंद हो जाएं और ग्रुप सेक्स करें। उन्होंने लिखा है कि अगर कोई अन्य उनकी तरह यह इच्छा रखता हो तो वे उनके ग्रुप में जरूर शामिल होना चाहेंगे और हर तरह का सेक्स करना चाहेंगे।
मेजर सुधीर एक बैबसाइट पर लिखते हैं ः मैं मर्दों से खेलने में रुचि रखता हूं। अनेक बार मैंने अपने घर की कुतिया से सेक्स किया है। मैं हर तरह का सेक्स करता हूं, जिसमें गुदा मैथुन, ओरल सेक्स, हस्तमैथुन, मुख मैथुन, अंडरवियर में खेल आदि-आदि। अगर कोई मेरी रुचि का पुरुष हो तो मेरे फलां नंबर पर मुझसे संपर्क करे।
आजकल एक नई तरह से भी अप्राकृतिक सेक्स होने लगा है। इसके लिए बड़े शहरों में कृत्रिम लिंग, कृत्रिम योनि व कृत्रिम गुदा मिलने लगी हैं। इसके अलावा गुड़िया की शक्ल में एक पांच-छह फुट की कृत्रिम औरत भी मिलने लगी है, जिसके शरीर पर सभी अंग बने होते हैं और जिसके साथ सेक्स किया जा सकता है। इन वस्तुओं का अन्य देशों में जहां बहुत बड़ा बाजार है, वहीं भारत के हर बड़े शहर में ये कृत्रिम अंग मौजूद हैं। इन अंगों को लेकर भी इंटरनेट पर ई-शॉपिंग की जा सकती है। अनेक वैबसाइट्स पर इन अंगों के रेट व मिलने के स्थान लिखे हुए हैं। इस प्रकार इंटरनेट आज अप्राकृतिक यौन संबंधों का अपने आप में एक बहुत बड़ा बाजार बना हुआ है, जो प्राकृतिक यौन संबंध बनाने वाले लोगों को भी अप्राकृतिक यौन संबंधों की ओर उकसाता है।
2. वेश्याएं और काल गल्र्स
वेश्याओं और काल-गल्र्स के आज अनेक रूप प्रचलित हैं। वेश्याएं आजकल केवल कोठों पर ही नहीं पाई जातीं और काल गल्र्स आजकल केवल ढंक-छिपकर ही धंधा नहीं करतीं। ये कहीं भी किसी भी रूप में मिल सकती हैं। आजकल ये होटलों, बार, रेस्तराओं, पार्कों, मसाज सेंटरों, क्लबों, ब्यूटी पार्लरों और पब्लिक प्लेस पर भी आसानी से मिल जाती हैं। अगर आप इन्हें अधिक पैसे दें तो इनसे किसी भी प्रकार का सेक्स किया जा सकता है। इन्हें केवल पैसों से मतलब होता है, इनके शरीर का कोई भी अंग सेक्स के लिए प्रयोग किया जा सकता है। ग्राहक को ये खुद अप्राकृतिक यौन संबंधों के लिए उकसाती हैं और ज्यादा पैसों की मांग करती हैं।
जिस समय यह पुस्तक लिखी जा रही है, प्राप्त आंकड़ों के अनुसार पूरे विश्व में लगभग छह लाख वेश्याएं हैं। अकेले भारत मंें चालीस लाख से अधिक महिलाएं वेश्यावृति कर रही हैं, जिनमें से अधिकांश अप्राकृतिक यौन संबंधों के लिए चौबीसों घंटे तैयार हैं। अगर इनका ग्राहक प्राकृतिक तरीके से भी सेक्स करना चाहे तो ये अधिक पैसे मांगकर अप्राकृतिक यौन संबंधों की भी पेशकश करती हैं। इसी प्रकार पूरे विश्व में लगभग एक करोड़ बहुत ही महंगी काल गल्र्स हैं, जो अपनी सेवाएं वीआईपी लोगों को देती हैं और किसी भी तरह का सेक्स करने से गुरेज नहीं करतीं। अकेले भारत में ऐसी हाई प्रोफाइल काल गल्र्स की संख्या लगभग दो लाख है। इसके अलावा पूरे विश्व में लगभग 75 लाख महंगे जिगोलो भी हैं, जो पुरुष और स्त्री दोनों से ही हर तरह का यौन संबंध बनाने को तैयार रहते हैं। अकेले भारत में लगभग चार लाख जिगोलो हैं, जिनका प्रयाग महिलाओं की खास पार्टियों, ग्रुप सेक्स पार्टी, किटी पार्टीज या महिला मसाज पार्लरों में किया जा रहा है। इसके अलावा अनेक जिगोलो ऐसे हैं, जो स्वतंत्र रूप से हाई प्रोफाइल महिलाओं से सेक्स संबंधों के लिए उपलब्ध हैं।
3. राजनीति
अनेक देशों की राजनीति भी अप्राकृतिक संबंधों और समलैंगिकता को सीधा-सीधा बढ़ावा दे रही है। उदाहरण के लिए अप्राकृतिक यौन संबंधों के लिए नेपाल एक गढ़ बना हुआ है। यह देश विदेशी पर्यटकों के लिए खास आकर्षण का केंद्र बन चुका है। पश्चिमी देशों के बाद अब एशिया के हिंदू पंरापरावादी नेपाल में अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने वालों और समलैगिकों को मौज मस्ती का नया ठिकाना मिलने जा रहा है। हिमालय की वादियों में बसे इस खूबसूरत देश में समलैंगिक सैलानियों को आकर्षित करने और उनकी मेहमान नवाजी के लिए एक अलग ट्रेवल एजेंसी की स्थापना नेपाल के इकलौते सामलैंगिक सांसद सुनील बाबू पंत अपने इकलौते समलैंगिक साथियों के साथ मिलकर कर रहे हंै। श्री पंत कहते है कि उन्हें उम्मीद है कि उनकी ट्रैवल एजेंसी दुनियाभर के संपन्न समलैंगिक स्त्री और पुरूषों को नेपाल में बडे पैमाने पर आकर्षित करेगी। उनका कहना है कि वे सुनिश्चित करेगे कि नेपाल में उनके साथ कोई भेदभाव नहीं हो तथा हम समलैगिंक पर्यटकों के लिए राप्टिंग, ट्रैकिंग, पर्वतारोहण और जंगल सफारी जैसे साहसिक पर्यटन गतिविधियों के पैकेज उपलब्ध करायेंगे।
पिंक माउंटेन ट्रेवल एंजेसी दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत शिखर माउंट एवरेस्ट और महात्मा बुद्ध की जन्मस्थली लुम्बिनी जैसे स्थानों पर समलैंगिकों की शादियां कराने का भी पैकेज उपलब्ध कराएगी। कंपनी को इससे दुनिया भर के पांच लाख से ज्यादा समलैंगिकों के आकर्षित होने की उम्मीद है। श्री पंत का कहना है कि हम हर तरह के समलंैगिक युगल को सहायता प्रदान करेंगे जो शादी करना चाहते हैं। और एवरेस्ट जैसी खास जगहों पर अपने रिश्तों को अटूट गठबंधन में बांधना चाहते हैं।
वैसे देखा जाए तो नेपाल में समलैगिकता एक वर्जित रिश्ता माना जाता है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यहां के समाज में समलैंिगकता को मान्यता मिलनी शुरू हुई है। लगभग पांच वर्ष पहले दो समलंैगिक युवकों ने सार्वजनिक रूप से विवाह कर परंपराओं को चुनौती दी थी। कुछ साल पहले नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतहासिक फैसले में सरकार को आदेश दिया था कि वह कानून में संशोधन कर समलैगिकों को अन्य नागरिकों के बराबर अधिकार सुनिश्चित करे। वर्ष 2007 में यहां समलैगिकों का एक फैशन शो भी आयोजित किया गया था
दूसरी ओर ब्रिटेन ऐसे संबंधों का पूरे विश्व में बादशाह बनना चाहता र्है। अब वह दिन दूर नहीं, जब ब्रिटेन में समलैंगिकों के विवाह पर ढोल नगाड़े बजा करेंगे और अदालत बाकायदा उनका विवाह कराएगी। दशकों से समलैंगिक विवाह का विरोध करती आ रही ब्रिटिश सरकार खुद इस तरह की शादियों को कानूनी सहमति देने पर विचार कर रही है। पूर्व प्रधानमंत्री डेविड कैमरून ने स्वयं इस मसले पर पहल करते हुए एक विधेयक पेश करने की योजना बनाई थी। पूर्व समानता मंत्री लेनी फैदरस्टोन ने पहले ही घोषर्ाि कर दी थी कि ब्रिटेन को समलिंगी अधिकारों के मामले में विश्व का लीडर होना चाहिए। ब्रिटेन में इस समय समलैंगिकता को तो मान्यता मिली है लेकिन समलिंगी विवाह वहां अभी भी अपराध की श्रेर्ीि में गिना जाता है।
समलैंगिक विवाह को मान्यता देने वाला पहला देश नीदरलैंड (2001) था। हालांकि खास बात ये भी है कि नीदरलैंड ही एकमात्र ऐसा देश है जहां देह व्यापार को कानूनी मान्यता मिली हुई है। नीदरलैंड के बाद बैल्जियम, स्पेन, कनाडा, दक्षिर् िअफ्रीका, नॉर्वे, स्वीडन भी समलिंगी विवाहों को मान्यता दे चुके हैं। आपको आश्चर्य होगा कि नेपाल जैसे देश ने भी समलिंगी विवाह को मान्यता दी है। स्त्री-पुरुष संबंध को जिस तरह प्राकृतिक माना जाता है, पुरुष-पुरुष या स्त्री-स्त्री संबंध को प्राकृतिक नहीं, बल्कि विकृत माना जाता है। लेकिन अब समलिंगी संबंध भी प्राकृतिक माने जाने लगे हैं। अभी तक सामाजिक धारर्ाि थी कि समलैंगिकता एक विकृति होती है जो बचपन में अनुकूल वातावरर् िनहीं मिलने, माता-पिता द्वारा समुचित पालन-पोषर् िन करने, विशेष परिस्थितियों में रहने आदि के कारर् िहोती है। कुछ हद तक यह सही हो सकता है लेकिन इन बातों के प्रमार् िमिले हैं कि समलैंगिकता प्राकृतिक भी होती है। समलिंगी अधिकारों की बात करने वालों का तर्क है कि जब समाज में महिला और पुरुषों को रहने का अधिकार है तो समलिंगियों को भी रहने का अधिकार होना चाहिए। फिर वो चाहे कैसे भी रहना चाहे। इन्हें इनके हिसाब से रहने और जीने दे। बस इस चीज की निगरानी करें कि यह दूसरों के जीवन यापन में बाधा न पहुंचाएं। राजनीति ने उनकी इस सोच को और बल दिया है तथा अप्राकृतिक संबंधों को बढ़ावा देने के लिए काम कया है और कर रही हैं।
4. मीडिया का रोल
अप्राकृतिक यौन संबंधों को बढ़ावा देने में मीडिया का रोल भी कुछ कम नहीं है। मीडिया का प्रायः यह स्वभाव रहा है कि वह नैगेटिव खबरों को बढ़ा-चढ़ाकर प्रकाशित करता है, वहीं पॉजीटिव खबरों को इतनी वरीयता नहीं देता। मर्डर, रेप, लूटपाट व क्राइम की खबरों को मीडिया जितनी तवज्जो देता है, वहीं अच्छी व प्रेरणादायक खबरें प्रायः वह स्थान नहीं ले पातीं।
भारत की अगर बात की जाए तो जब भी क्वियर समाज ने कोई प्रदर्शन किया है या जुलूस निकाला है, तो मीडिया ने उसे प्रमुखता से प्रचारित किया है। न्यायालयों में भी समलैंगिकता के मामले पर कभी कोई फैसला आया है तो मीडिया ने उसे जमकर उछाला है और एक ही समाचार कई-कई दिनों तक चलता रहा है। चैनल या समाचार-पत्र चाहे कोई भी हो, अन्य मुद्दों पर इस तरह के मुद्दे हमेशा हावी रहे हैं। ऐसा लगता हैं कि मीडिया ने लोगों को अप्राकृतिक यौन संबंधों की तरफ आकर्षित करने का जैसे ठेका ले लिया है।
मीडिया का प्रभाव आज जन-जन तक है। ऐसा संभव ही नहीं है कि मीडिया अगर किसी बात को मुद्दा बनाकर जोर-शोर से उछाले और उसका असर समाज के हर उम्र के लोगों पर न पड़े। कौनसा मुद्दा कितना जोर पकड़ पाता है तथा समाज का समर्थन जुटा पाता है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि मीडिया उस मुद्दे को कितनी जोर-शोर से उठा पाता है।
5. अश्लील साहित्य
अश्लील साहित्य ने हमेशा अप्राकृतिक यौन संबंधों को बढ़ावा दिया है। जो लोग अप्राकृतिक संबंधों के बारे में ज्यादा नहीं जानते या फिर प्राकृतिक यौन संबंधों तक ही सीमित रहे हैं, उन्हें भी अश्लील साहित्य ने अप्राकृतिक यौन संबंधों की ओर धकेलने का कुप्रयास किया है।
ओपन सेक्स की पुस्तकें, जिनमें बेहद घटिया भाषा का प्रयोग किया जाता है, लोगों को सहजता से उपलब्ध होती रही हैं। इन पुस्तकों में सेक्स के विकृत रूप को जमकर परोसा जाता है तथा अप्राकृतिक संबंधों की ओर लोगों का रूझान बढ़ाया जाता है। मस्तराम जैसे छद्म नामों के लेखकों द्वारा लिखित विकृत सेक्स की पुस्तकों का कारोबार आज भी करोड़ों में है, जबकि अब ऐसी ही कहानियां ऑडियो कैसेट्स में भी उपलब्ध हैं। यह अश्लील साहित्य जहां लोगों को कुंठित कर रहा हे, वहीं अप्राकृतिक सेक्स की ओर भी अग्रसर कर रहा है।
6. सेक्स ट्रेड माफिया
बहुत कम लोग जानते हैं कि सेक्स पूरे विश्व का एक बहुत बड़ा व्यापार बन चुका है तथा इसे अंतर्राष्ट्रीय सेक्स ट्रेड माफिया चलाता है। पिछले दिनों दिल्ली से छपने वाले एक प्रतिष्ठित साप्ताहिक अखबार ने इस मुद्दे पर पड़े मकडजाल को साफ करने की कोशिश भी की है। अखबार ने लिखा है कि इस गोरखधंधे में दिल्ली और मुंबई में बैठे कुछ अति आधुनिकता का स्वांग भरने वाले फैशन परस्त लोग भी शामिल हैं। इस बिरादरी के लोग बड़े अखबारों और टी.वी. चैनलों में भी घुसपैठ कर चुके हैं।
अखबार के मुताबिक इस माफिया के लोग हर बड़े शहर में अड्डा जमाए हुए हैं तथा सेक्स की गतिविधियों को मीडिया के सहारे बढ़ाते रहते हैं। शायद इसीलिए जब समलैंगिकता के बारे में दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला आया था तो सबसे पहले मीडिया वालों में से वह वर्ग सक्रिय हुआ था जो इस तरह के माफिया की कृपा से पहले से फिट किया जा चुका था। इस फैसले को लेकर दिल्ली के जंतर मंतर पर दस-बीस लोग नाचते गाते इकट्ठा हुए थे। लेकिन उनको कुछ टी.वी. चैनलों ने इस तरह पेश किया, मानो कोई बहुत बड़ी राजनीतिक घटना हो गई हो। एक अंग्रेजी अखबार की कवरेज देखकर तो लगता था कि देश ने किसी बहुत बड़ी लड़ाई में जीत हासिल की हो। इस समाचार पत्र ने यहां तक लिखा है कि इस सेक्स ट्रेड माफिया के निशाने पर मैक्सिको और मलेशिया के बाद अब भारत है।
इस अंतर्राष्ट्रीय सेक्स ट्रेड माफिया की पूरी कोशिश है कि पूरे विश्व को सैक्स का हब बना दिया जाय। भारत इस माफिया के काबू में नहीं आ रहा था, लेकिन अब लगता है काबू आ रहा है। इसीलिए समलैंगिकता पर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसले को एक जीत के रूप में पेश किया जा रहा है। इन लोगों की कोशिश होगी कि आगे चलकर वेश्यावृत्ति को भी जायज घोषित करवा दिया जाय जिसके बाद से भारत को सैक्स पर्यटन का केंद्र बनाकर पूरी दुनिया के लोगों को यहां बुलाया जाय। अगर यह सच है तो यह बहुत ही खतरनाक है और सरकार, राजनीतिक दल, न्यायपालिका और आम आदमी को सावधान हो जाना चाहिए। एड्स की चपेट में पड़ चुकी दुनिया में अगर सेक्स माफिया के चक्कर में पड़कर भारत गाफिल पड़ गया तो देश तबाही की तरफ चल पड़ेगा। मामले की गंभीरता को देखते हुए न्यायपालिका ने तो पहल कर दी है।
इस तरह की खबरें अकसर आती रहती हैं कि सेक्स व्यापार के धंधेबाजों ने गरीब मां बाप के बच्चों का अपहरर् िकरवा कर या खरीद कर विदेश भेजने की कोशिश की। अगर समलैंगिकता अपराध नहीं रह रह जाएगा तो इस तरह के धंधेबाज, बच्चों को विदेश भेजने की कोशिश नहीं करेंगे। यहीं अपने देश में ही सेक्स ट्रेड के अड्डे खुल जाएंगे। समलैंगिकता के मामले को दूसरी आजादी की तरह पेश करने वाले अज्ञानी नेताओं और बुðिजीवियों को फौरन संभल जाना चाहिए।
इस माफिया ने पैसा तो कुछ चुनिंदा एनजीओ और लॉबी करने वालों को दिया होगा लेकिन मीडिया का इस्तेमाल करके इसे मानवाधिकार का मामला बनाने की कोशिश कर रहे हैं। एक बार अगर यह मानवाधिकार का मामला बन गया तो लॉबी करने वालों का एक नया वर्ग भी इससे जुड़ जाएगा जो बात को और पेचीदा बना देगा। देखा गया है कि कुछ नेता भी इस मामले में गोल मटोल बात कर रहे हैं, इन लोगों को फौरन संभल जाना चाहिए। अगर यह मुगालता है कि समलैंगिक लोगों की आबादी बहुत ज्यादा है तो उसे दुरुस्त कर लेने की जरूरत है। यह सब मीडिया में बैठे कुछ समलैंगिक लोगों की बनाई कहानी है, इसको गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है। सभी धर्मों के नेताओं ने इस मामले में अपनी राय दे दी है।
महिलाओं व बच्चों की तस्करी
इस अंतर्राष्ट्रीय सेक्स ट्रेड माफिया को भारत में अप्राकृतिक सेक्स को बढ़ावा देने के लिए बड़े पैमाने पर अभियान चला रखा है। इसने भारत में चाइल्ड और वुमन राइट्स को भी बड़ा झटका दिया है। इस माफिया की बदौलत भारत महिलाओं व बच्चों की तस्करी का बड़ा बाजार बन चुका है और देश की राजधानी दिल्ली और कलकत्ता जैसे शहर इस माफिया की पसंदीदा जगह बनती जा रही है, जहां देश के विभिन्न भागों से बच्चों और महिलाओं को लाकर ना केवल आसपास के इलाकों बल्कि विदेशों में भी भेजा जा रहा है। इसके अलावा नेपाल से हर वर्ष दस हजार से भी अधिक तथा बांग्लादेश से 25 हजार से भी अधिक
महिलाएं व बच्चे भारत लाए जा रहे हैं।
भारत में इस तस्करी को लेकर यूएन की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक भारत में साल 2009 से 2011 के बीच 1ए77ए 660 बच्चे लापता हुए जिनमें से 1ए22ए190 बच्चों का पता चल सका, जबकि अभी भी 55 हजार से ज्यादा बच्चे लापता हैं, जिनमें से 64 फीसदी यानी लगभग 35ए 615 नाबालिग लड़कियां हैं। हर साल ये आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है। हाल ही में करीब 1 लाख 60 हजार महिलाएं लापता हुईं, जिनमें से सिर्फ 1 लाख 3 हजार महिलाओं का ही पता चल सका, वहीं लगभग 56 हजार महिलाएं अब तक लापता हैं (सभी आंकड़े एनसीआरबी की गृह मंत्रालय को साैंपी रिपोर्ट से लिए गए हैं)। माना जा रहा है कि ये सभी लापता महिलाएं व बच्चे अंतर्राष्ट्रीय सेक्स ट्रेड माफिया व मानव अंग बेचने वाले गिरोहों के हाथ लग गए हैं। या तो इनके अंग बेचे गए हैं या फिर इन्हें सेक्स के धंधे में लगा लिया गया है। कहने की जरूरत नहीं है कि यह माफिया हर तरह के सेक्स की आपूर्ति कर रहा है, जिसका मतलब है कि अप्राकृतिक संबंधों को खुला बढ़ावा दे रहा है।
पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता पूर्र्वी भारत में महिलाओं की तस्करी और खरीद-फरोख्त के सबसे बड़े केंद्र के तौर पर उभर रहा है। नेशनल क्राइम रिकाड्र्स ब्यूरो की ओर से जारी ताजा आंकड़ों के बाद अब मुख्यमंत्री ममता बनर्र्जी भी मानती हंैं कि राज्य में महिलाओं की खरीद-फरोख्त का धंधा तेजी से फल-फूल रहा है। उनका आरोप है कि पूर्व सरकार ने इस पर अंकुश लगाने की दिशा में कभी कोई ठोस पहल नहीं की।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि अंतर्र्र्राष्ट्रीय सेक्स ट्रेड माफिया की जड़ें लगभग हर देश में फैल चुकी हैं तथा यह भारत को भी सेक्स हब बनाने के लिए हर तरह के उपाय कर रहा है तथा लोगों को अप्राकृतिक यौन संबंधों की ओर उकसा रहा है।
अप्राकृतिक यौन संबंधों पर अगर रोकथाम लगानी है तथा इसे सीमित करना है तो इसके माध्यमों पर रोक लगानी होगी। इंटरनेट पर हर तरह की अश्लील बैबसाइट्स पर जहां सख्ती से रोकथाम लगानी होगी, वहीं सेक्स ट्रेड माफिया की मंशा को समझकर उसके खिलाफ भी सख्त कार्रवाई करनी होगी। ऐसे हर माध्यम या जिम्मेवार लोगों की पहचान करनी होगी, जिनके कारण अप्राकृतिक यौन संबंध पनप रहे हैं तथा उन पर सख्ती बरतनी होगी, वर्ना स्वास्थ्य सेवाओं का दिवाला निकल जाएगा तथा लोग तरह-तरह की बीमारियों के शिकार हो जाएंगे।
Copywrite : J.K.Verma Writer
9996666769
jkverma777@gmail.com
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