Homosexuality and Unnatural Sex Relations-4 : अप्राकृतिक यौन संबंधों का प्राचीन इतिहास

  अप्राकृतिक यौन संबंधों के उदाहरण आदिकाल, पुराकाल और वर्तमान काल यानी हर कालखंड में मिलते हैं। भारत ही नहीं, संभवतः दुनिया के सबसे पुराने सेक्स ग्रंथों में से एक वात्स्यायन रचित कामसूत्र में समलैंगिकों के बारे में विस्तृत वरर््िन मिलता है। इस ग्रंथ के अनुसार वैदिक काल में जिनसे अप्राकृतिक यौन संबंध बनाए जाते थे, उन्हें नपुंसक की श्रेर्ीि में रखा जाता था। दरअसल नपुंसक का तब अर्थ था ः वे पुरुष, जो तीसरी प्रकृति के हंैं तथा संतानोत्पत्ति में विश्वास नहीं रखते। उस युग र्में इन्हीं लोगों को ही मुखमैथुन की इजाजत थी। ऐसे पुरुष समलैंगिक कहे जाते थे तथा ये प्रायः स्त्रियोचित व्यवहार रखते थे। वे अलग पहचान में आते थे। समलैंगिक पुरुषों को स्वतंत्र रूप से अपनी पहचान बनाकर रहने की आजादी थी। पुरुष-पुरुष एक साथ रहकर और स्त्री-स्त्री के साथ स्वेच्छा से यौन संबंध बना सकते थे। समलैंगिकता को तब माता-पिता सामान्य घटना मानते थे। 

कामसूत्र में लैंगिकता की पांच श्रेर्यििां हैं ः स्वैरिर्ीि, इलिबा, शंधा, नपुंसक और कामी। कामसूत्र से पहले लिखे गए कामशास्त्र में उभयलिंगियों को ऐसा पुरुष बताया गया है जो हिजड़ों और वेश्याओं को संरक्षर् िदेता है, ऐसा पुरुष जो महिला समलिंगियों, शाही हरम के हिजड़ों को पसंद करता है और ऐसी जनाना जो अपने राजा के बाहर जाने की घड़ी में समलिंगी हो जाती हैं; साथ ही पुरुष नौकर जो समलिंगी के रूप में शुरुआत करते हैं और फिर स्त्रियों को पसंद करते हैं।

कामसूत्र में समलैंगिक आचरर् िऔर कई लिंग-प्रकारों का वरर््िन आम मिलता है। इस ग्रन्थ में किन्नरों और समलैंगिक पुरुषों में स्त्री-भाव और पुरुष-भाव होने तथा उनके पेशे का विस्तृत उल्लेख मिलता है। ऐसे लोगों के बीच वैवाहिक-संबंधों का विवरर् िभी दिया गया है। बारहवीं सदी में रचित कामसूत्र की महत्वपूरर््ि टीका यशोधर-कृत जयमंगल में समलैंगिक पुरुषों के बीच विवाह के उल्लेख के साथ यह भी कहा गया है कि ऐसे पुरुषों में परस्पर मैत्री और विश्वास का गहन भाव मिलता है। कामसूत्र और जयमंगल में स्त्रिओं के समलैंगिक संबंधों का उल्लेख भी विस्तार से हुआ है. 

मनुस्मृति

जिस समय मनुस्मृति तैयार की गई, उस समय भी अप्राकृतिक यौन संबंध जोरों पर थे। इसलिए इस ग्रंथ में अप्राकृतिक संबंधों को न केवल अपराध घोषित किया गया, बल्कि इसके लिये अनेक सजाओं का भी उल्लेख किया गया।  इस ग्रंथ में स्पष्ट किया गया कि यदि अधिक उम्र की स्त्री किसी युवती, जिसका कौमार्य भंग न हुआ हो, के साथ ऐसा करे तो उसका मुंडन कर या दो अंगुलियां काट कर गधे पर बैठा कर नगर घुमाने की सजा की व्यवस्था हो। इसी प्रकार यदि दो युवतियां, जिनका कौमार्य भंग ना हुआ हो, ऐसा करें तो उन्हें छड़ी से पीटने और आर्थिक दंड का प्रावधान इस ग्रंथ में है। मनुस्मृति की इन व्यवस्थाओं में मुख्य चिंता कौमार्य की देखी गई है, जिसके भंग हो जाने से शादी की संभावनाओं पर विपरीत असर पर प्रकाश डाला गया है।  हालांकि इस ग्रंथ में ऐसी स्त्रियों के संबंधों पर कोई व्यवस्था नहीं की गई, जिनका कौमार्य भंग हो चुका हो। पुरुषों के समलैंगिक संबंधों पर यह ग्रंथ अपेक्षाकृत अधिक उदार है। ऐसे पुरुषों की जाति का स्तर निम्न करने या पूरे कपड़े पहन कर स्नान की सजा का वरर््िन है। यह ग्रंथ अक्सर विषमलिंगी यौन-अपराधों के लिये समलैंगिकों की तुलना में कठोर सजा का उल्लेख करता है। इसमें ‘तृतीय लिंग’ यानि हिजड़ों की उत्पत्ति का विवरर् िभी दिया गया है जिसके अनुसार बालक और बालिका का जन्म क्रमशः वीर्य और स्त्री-तत्व की अधिकता से निर्धारित होता है और जब ये तत्व समान मात्रा में होते हैं तब तृतीय लिंग के शिशु (‘नपुसक’) या बालक-बालिका युग्म के जुडवां बच्चे पैदा होते हैं।

नारद स्मृति एवं सुश्रुत संहिता

चौथी सदी के आसपास रचित नारद स्मृति भी साबित करती है कि प्राचीन युग में अप्राकृतिक यौन संबंध प्रचलित थे। समलैंगिक संबंध उस युग में आम बात थी। इसीलिए इस ग्रंथ में समलैंगिक पुरुषों की शादी वर्जित की गई। इस ग्रंथ में चौदह प्रकार के पुरुषों का वरर््िन है जिन्हें स्त्री के साथ यौनाचार के लिये अक्षम माना गया है। प्राचीन भारत के महत्वपूरर््ि चिकित्सा-ग्रन्थ सुश्रुत संहिता में कहा गया है कि समलैंगिक पुरुषों और किन्नरों की यौन-विशेषताएं गर्भ-धारर् िके समय ही निर्धारित हो जाती हैं। शब्द-कल्प-द्रुम संस्कृत कोष, काम-सूत्र और स्मृति रत्नावली जैसे ग्रंथों में बीस तरह के समलैंगिक पुरुष बताये गए हैं। खजुराहो, पुरी और तंजौर के मंदिरों में समलैंगिक संबंधों को दर्शाते चित्र बहुतायत में देखे जा सकते हंैं। कई पुराने जैन और बुद्ध मंदिरों में भी ऐसे चित्र मिलते हैं।

     वाल्मीकी रामायण और पुराण

वाल्मीकि रामायर् िके एक विवरर् िके अनुसार लंका में हनुमान ने ऐसी अनेक स्त्रियां देखीं, जो आपस में प्रर्यि-क्रिया करती थीं और रावर् िभी उसमें शामिल होता था। पद्मपुरार् िमें दो रानियों की कथा है जिसमें उन्होंने परस्पर रति-क्रिया कर एक अस्थिरहित शिशु को जन्म दिया था। महान संगीतकार मुथुस्वामी दीक्षितर की नवग्रह कीर्ति में बुध को नपुंसक यानि न तो पूरर््ि पुरुष और न ही पूरर््ि स्त्री माना गया है।

 पुरार्ोिं की कथा का हवाला देते हुए उन्होंने लिखा कि जब बृहस्पति को पता चला कि उनकी पत्नी तारा के गर्भस्थ शिशु का पिता चन्द्र है तो उन्होंने शिशु को उभयलिंगी होने का श्राप दे दिया। इस प्रकार पैदा हुए बुध ने इला से शादी की जो एक पुरुष था किन्तु एक श्राप के कारर् िस्त्री हो गया था। महाभारत के अनुसार इनके संसर्ग से चन्द्र वंश की उत्पत्ति हुई। पौरार्किि कथाओं में ऐसे दृष्टान्तों की भरमार है। नारद एक तालाब में गिरकर स्त्री हो गये और उन्हें माया का ज्ञान हुआ। शिव यमुना में नहाकर गोपी बने ताकि कृष्र् िके संग रास कर सकें। वृंदावन के गोपेश्वर मंदिर की यही कथा है। अहमदाबाद के निकट स्थित बहुचार जी मंदिर के बारे में कथा प्रचलित है कि कभी यहां एक तालाब था जिसमें नहाने से स्त्रियां पुरुष हो जाती थीं।  आज स्त्रियां इस मंदिर में पुत्र-प्राप्ति के लिये पूजा करती हैं और वहां के भक्तों का आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। ये भक्त पुरुष होते हुए भी स्वयं को स्त्री मानते हैं और साड़ियां पहनते हैं।

कहानी अरवण की

 तमिलनाडु के एक गांव में हर वर्ष अरवर्ीि कहे जाने वाले किन्नर अरवर् िकी मृत्यु का शोक मनाने के लिये जमा होते हैं। कथा है कि अरवर् िअर्जुन और उसकी सर्व पत्नी उलूपी का पुत्र था जिसकी बलि चढ़ाकर ही पांडव महाभारत के युद्ध में विजयी हो सकते थे। अरवर् िने बलि से पहले शर्त रख दी कि उसकी शादी कर दी जाए। अब कोई स्त्री ऐसे व्यक्ति से शादी के लिये तैयार नहीं हो सकती थी जिसकी मृत्यु निश्चित थी। अंततः कृष्र् िने स्वयं मोहिनी रूप धारर् िकर उससे शादी की और सुहागरात मनाई। सुबह बलि के बाद मोहिनीरूपी कृष्र् िने विधवा के रूप में विलाप भी किया था।

शिखंडी

महाभारत में एक शिखंडी नामक पात्र की कथा आती है। इस कथा में स्त्री रूप में विदा हुए शिखंडी को उसके पिता द्रुपद ने पुरुष की तरह पाला था और उसकी शादी भी कर दी थी। जब उसकी पत्नी को वास्तविकता का पता चला तो वह शिखंडी को छोड़ अपने पिता के घर चली आई। क्रोधित पिता ने द्रुपद के विनाश की चेतावनी दे दी। हताश शिखंडी जंगल में जाकर आत्महत्या का विचार कर रहा था। वहीं एक यक्ष ने उसकी स्थिति पर दया करते हुए रात भर के लिये अपना लिंग उसे दे दिया ताकि वह अपना पुरुषत्व सिद्ध कर सके। उधर यक्ष की इस हरकत से नाराज यक्षराज कुबेर ने उसे श्राप दे दिया कि शिखंडी के जीते जी उसे अपना लिंग वापस नहीं मिल पायेगा। यही शिखंडी महाभारत में भीष्म के घायल होने और अंततः उनकी मृत्यु का कारर् िबना।

 कथा के अनुसार शिखंडी पिछले जन्म में अम्बा नामक राजकुमारी था जिसका दो बहनों के साथ भीष्म ने अपहरर् िकर लिया था। भीष्म इन बहनों की शादी शारीरिक रूप से अक्षम अपने अनुज विचित्रवीर्य से करना चाहते थे। अम्बा ने भीष्म को बताया कि उसका एक प्रेमी है और प्रार्थना की कि उसे मुक्त कर दें। भीष्म ने उसे मुक्त कर दिया लेकिन उसके प्रेमी ने उसे अपनाने से मना कर दिया और उसे वापस विचित्रवीर्य के पास लौटना पड़ा। अब विचित्रवीर्य ने भी उसे अस्वीकार कर दिया। अब अम्बा ने भीष्म के सामने विवाह का निवेदन रखा लेकिन उन्होंने तो आजीवन ब्रह्मचारी रहने व्रत लिया हुआ था। क्रोधित अम्बा ने परशुराम से भीष्म की हत्या करने को कहा लेकिन वह असफल रहे। निराश अम्बा ने शिव की आराधना की और यह वरदान मांगा कि इच्छा मृत्यु का वर पाए भीष्म की मृत्यु का कारर् िवह बने। शिव ने कहा कि यह अगले जन्म में ही संभव हो सकेगा।

इसी शिखंडी को कृष्र् िने अपने रथ पर आसीन किया और अर्जुन के साथ भीष्म के सामने आ खड़े हुए। भीष्म ने कृष्र् िपर युद्ध धर्म के विरुद्ध आचरर् िका आरोप लगाते हुए एक स्त्री पर वार करने से मना कर अपना धनुष नीचे रख दिया। कृष्र् िने भीष्म को उत्तर दिया कि आपने हमेशा ही अपने द्वारा निर्धारित मानदंडों पर निरर््िय लिया है और धर्म की अवहेलना की है। आज भी उन्हीं मानदंडों पर वे शिखंडी को स्त्री बता रहे हैं जिसका पालन उसके पिता ने पुरुष की तरह किया है और उसके पास यक्ष का दिया हुआ पुरुष-लिंग भी है। भीष्म ने फिर भी युद्ध करने से मना कर दिया जिसपर कृष्र् िने शिखंडी और अर्जुन को ललकारा कि वे भीष्म पर वार करें ताकि भेदभाव पर आदृत उनकी मान्यताओं की जगह समावेश को महत्व देने वाले धर्म की स्थापना हो सके।

आज के संदर्भ में 

शिखंडी समलैंगिकों, किन्नरों आदि समूहों का प्रतीक-व्यक्तित्व है जिन्हें आज ‘क्वियर’ कहा जाता है। क्वियर को हिंदी में विचित्र या अनूठा कहा जाता है। जन प्राचीन संहिताओं में समलैंगिकता को अपराध और किन्नरों को हेय माना गया है, उन संहिताओं के व्यापक स्वीकृति के प्रमार् ितो इतिहास में नहीं हैं, पर पारंपरिक और पौरार्किि साहित्य में ‘क्वियर’ की बड़ी उपस्थिति समाज की सहिष्र्ुिता और सहजता का बड़ा प्रमार् िहै। यही उपस्थिति भारत के अन्य मतों, पंथों, धर्मों और समुदायों के साहित्य में भी दर्ज है। इस तथ्य का अस्वीकार करना भारत की निर्मार्-िप्रक्रिया की उस राह को अवरुद्ध करना है जिसका संस्कार अद्र्धनारीश्वर की पूजा, सूफी-संतों की वंदना, किन्नरों के आशीर्वाद और आजादी की लड़ाई के आदर्शों से उपजे संविधान की पवित्र व्यवस्था से बनता है।

एक और कथा

युद्धोपरांत भीष्म के मृत्यु-वरर् िसे पूर्व पांडव उनका आशीर्वाद लेने गए। बातचीत में युधिष्ठिर ने पूछा- पितामह! पुरुष और स्त्री में किसे अधिक यौन सुख प्राप्त होता है? संतान द्वारा माता और पिता कहे जाने से माता और पिता में किसे अधिक करर््िप्रिय लगता है? भीष्म ने उत्तर दिया कि राजा भंगाश्वन के अतिरिक्त इन प्रश्नों का उत्तर कोई नहीं जानता। उनकी अनेक अनेक पत्नियां और संतानें थीं।  इंद्र के श्राप से वह स्त्री बन गया और उसने एक पुरुष से शादी कर संतानों को भी जन्म दिया। इस प्रकार उसके ज्ञान में पति और पत्नी तथा माता और पिता का अनुभव है। वही तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर देने में सक्षम है।

सच्चाई यह है कि अगर वेदों के बाद हम दूसरे पुराग्रंथों पर आयें तो महाभारत काल में अर्जुन के ब्रहन्नला बनने से लेकर तमाम ऐसी घटनाओं के वरर््िन मिलते हैं, जो ट्रांसजेंडर और होमोसेक्सुअल के बारे में इंगित करते हैं। इस संदर्भ में राजा विराट का उदाहरर् िभी पठनीय है। 

ओल्ड टेस्टामेंट

ईसाइयों के ओल्ड टेस्टामेंट में कहा गया है कि अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने वाले लोगों को दैवीय अग्नि दुःखी करेगी। इसका साफ अर्थ है कि ईसा के जमाने में भी इसका खासा पचलन था। एक धर्म विशेष में इंगित है कि सुकर्मों का फल मिलेगा, जन्नत में सुंदर लड़कों के साथ के रूप में। अतः देखा जाये तो समलैंगिकता आदिकाल, पुराकाल, वर्तमान काल यानी हर कालखंड में मौजूद थी।

प्राचीन काल

अगर इतिहास से जुड़ी कुछ पुस्तकों पर विश्वास किया जाए तो भारत में जब बौद्ध धर्म का उदय हुआ तो कम उम्र के मूंछ-दाढ़ी विहीन भिक्षुओं की भरमार हो गयी। बताया जाता है कि इस दौरान समलैंगिकता को खूब बढ़ावा मिला। यह सिलसिला गुप्त काल तक निर्बाध चला। मुगल काल के दौरान भी भारत में समलैंगिकता को खूब बढ़ावा मिला, पर तब वैदिक काल सरीखा समर्पर्,ि विश्वास इन रिश्तों में न होकर अय्याशी इसका प्रमुख कारर् िबन गई। उत्तर भारत के तमाम राजा, नवाब तथा दूसरे रईस अपने समलैंगिक शौक के लिए चर्चित रहे। लार्ड विलियम वैंटिक के जमाने में तो प्रशासनिक स्तर पर इसके लिए कार्रवाई करनी पड़ी थी। आजादी के बाद नये संविधान और कानून में इसे अप्राकृतिक और जुर्म करार देने के बाद फर्क इतना आया कि जो व्यवहार तब थोड़ा खुलेआम और जाना-पहचाना था, वह छिप-छिपाकर होने लगा। 

  मुगलकाल में इस्लामी कानून इस मामले में बड़े सख्त थे। पर पर्दे के पीछे इस तरह के रिश्ते पनपते रहे। ऐसे कई किस्से और ऐतिहासिक उदाहरर् िबड़ी आसानी से मिलते हैं और शोध करने पर तमाम प्रमार् िभी। उदाहरण के लिए रजिया भले ही याकूत से पे्रम करती थी पर वह समलिंगी थी सभी जानते हैं। चूंकि सत्ता उसके हाथ थी, उसे कोई सजा नहीं दे सका।

साहित्य में भी 

आजादी के पहले का हिन्दी-उर्दू साहित्य भी अप्राकृतिक यौन संबंधों की गवाही देता है। मशहूर लेखिका इस्मत चुगताई की महिला समलैंगिकता पर लिखी किताबं पर 1941 में जोरदार हंगामा हुआ था और उन पर ब्रिटिश सरकार ने मुकदमा चलाया था। बाबर ने अपनी आत्मकथा बाबरनामा में समलैंगिक रिश्तों का जिक्र करते हुए कई बड़े-बड़े लोगों को फटकार लगाई थी कि उन्होंने अपनी जिस्म की भूख मिटाने के लिए लड़के रख रखे हैं। अगर विभिन्न पुस्तकों में दी गई जानकारियों पर विश्वास किया जाए तो पता चलता है कि लखनऊ के कई नवाब, माइकल एंजिलो, अरस्तू, सुकरात, शेक्सपीयर, अब्राहम लिंकन, लोरेंस नाइटेंगल, टेनिस खिलाड़ी मार्टिना नवरातिलोवा, हिटलर जैसे कई लोग कम या ज्यादा मात्रा में समलिंगी थे। सिकंदर और नेपोलियन की सेनाओं में ऐसे संबंध आम थे। 

प्रसिद्ध लेखक सलीम किदवई के अनुसार मीर तकी मीर और शरमद शाहीद जिन्हें हरे भरे शाह के नाम से भी जाना जाता है, भी समलैंगिक थे। मशहूर उर्दू शायर हाफिज फारसी कहते थे ः 

गर आन तुर्क शीराजी बे-दस्त आरद दिल-ए-मारा, 

बा खाल हिंदोश बख्शम समरकंद ओ बुखारा। 

इसका अर्थ है ः अगर यह तुर्क लड़का मेरे दिल की पुकार सुन ले, तो इसके माथे पर लगे मस्से के लिए मैं समरकंद और बुखारा कुर्बान कर दूं। समकालीन उर्दू कविता में इफतिखार नसीम इफ्ती खुद को समलैंगिक मानते थे। हिंदी साहित्य में श्याम मनोहर जोशी में अपने लेखन में समलैंगिक संबंधों को खूब दुत्कारा है।

मुंबई स्थित सेक्सुअल इतिहासकार मारियो डीपेन्हा दो सदियों के दौरान लैंगिक रुझान के बारे में इस प्रकार बताते हैं ः तब यौनेच्छा कहीं ज्यादा अस्थिर थी। भारतीय लैंगिक पहचान काफी कम उभय-लिंगी, जेंडर केंद्रित थी और सामाजिक हैसियत से परिभाषित होती थी। 

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि अप्राकृतिक यौन संबंध का इतिहास बहुत पुराना है। ऐसे संबंध लगभग हर युग में प्रचलित रहे हैं।

Copywrite J.K.Verma Writer 9996666769

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